नई दिल्लीबड़ी खबरलखनऊ

स्कूलों का मर्जर कमज़ोर तबकों को शिक्षा से दूर करने की साज़िश : शाहनवाज़ आलम

साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 204 वीं कड़ी में बोले कांग्रेस नेता

नयी दिल्ली : यूपी की भाजपा सरकार का 5 हज़ार स्कूलों का मर्जर का आदेश दलितों और पिछड़ों को अनपढ़ बनाने की साज़िश है. इसपर रोक की याचिका का इलाहबाद हाईकोर्ट द्वारा ख़ारिज कर दिया जाना आश्चर्यजनक है. यह अनुच्छेद 21ए द्वारा 6 से 14 साल के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा पाने के मौलिक अधिकार पर हमला है. ये बातें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 204 वीं कड़ी में कहीं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार ने 2009 में शिक्षा का अधिकार क़ानून बनाया था जिसके तहत 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य प्रार्थमिक शिक्षा अपने पड़ोस में स्थित स्कूल में हासिल करना उनका अधिकार बनाया गया. इसके तहत कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों के लिए उनके घर से एक किलोमीटर के दायरे में स्कूल खोलने का प्रावधान है. इसके लिए न्यूनतम 3 सौ आबादी तय की गयी थी. उसी तरह कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों के लिए न्यूनतम 8 सौ आबादी पर 3 किलोमीटर के दायरे में स्कूल खोलने का प्रावधान है. यूपीए सरकार द्वारा बनाए गए इस क़ानून से सबसे ज़्यादा सवर्ण गरीबों, लड़कियों, दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों को लाभ हुआ और बहुत से परिवारों की पहली पीढ़ी प्रार्थमिक शिक्षा तक पहुंच पायी. उन्होंने कहा कि योगी सरकार का यह तर्क कि स्कूलों में बच्चों की संख्या कम होने के कारण वो स्कूलों को बंद कर रही है शिक्षा के अधिकार क़ानून के ख़िलाफ है क्योंकि उस क़ानून में छात्रों के न्यूनतम पंजीकरण की सीमा निर्धारित नहीं की गयी है.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि आरएसएस और भाजपा नहीं चाहते कि गरीब और कमज़ोर तबकों के बच्चे पढ़ें क्योंकि वो पढ़ेंगे तो उनमें जागरूकता आएगी और वो आरएसएस के साम्प्रदायिक और गरीब विरोधी नीतियों पर सवाल उठाएंगे. इससे सबसे ज़्यादा असर लड़कियों की शिक्षा पर पड़ेगा क्योंकि योगी सरकार में लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं और कोई भी अपनी बच्चियों को घर से दूर स्कूल नहीं भेजना चाहता.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यह बहुत आश्चर्य की बात है कि कोई सरकार मौलिक अधिकारों के ख़िलाफ आदेश जारी कर दे रही है और न्यायलय उस पर रोक लगाने के बजाये उसे उचित ठहरा दे रही है. उन्होंने कहा कि हमारा संविधान इमरजेंसी के अलावा हर परिस्थिति में मौलिक अधिकारों के संरक्षण की गारंटी देता है. लेकिन इस मामले में इलाहबाद हाईकोर्ट का इस सरकारी आदेश की वैधानिकता से जुड़े तीन मुख्य प्रश्नों कि क्या यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 21 ए और शिक्षा का अधिकार क़ानून के खिलाफ नहीं है? क्या यह आदेश मनमाना नहीं है? और क्या संविधान और शिक्षा के अधिकार क़ानून के विरुद्ध होने के कारण यह आदेश रद्द नहीं किया जाना चाहिए, पर विचार किए बिना ही याचिका का खारिज कर दिया जाना न्यायपालिका की भूमिका पर भी सवाल खड़े करता है. उन्होंने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि स्कूलों के बंद होने पर व्यापक तौर पर मीडिया में खबरें प्रकाशित हुईं लेकिन सर्वोच्च न्यायलय ने इस जनहित से जुड़े इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान नहीं लिया.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button