उत्तर-प्रदेशनई दिल्लीबड़ी खबरलखनऊ

तीन राज्य, तीन घटनाएं : तीनों के पीछे संघ का एजेंडा

जसविंदर सिंह

तीन राज्यों में हाल में घटी घटनाएं वैसे तो अलग-अलग लगती हैं, लेकिन इन तीनों का स्रोत एक ही है l इसके पीछे आरएसएस का गुप्त नहीं, बल्कि घोषित एजेंडा है। भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार इसे लागू कर रही हैl यह घटनाएं हैं : महाराष्ट्र में कक्षा एक से हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करना ; चुनाव आयोग द्वारा बिहार में मतदाताओं की व्यापक और विस्तृत जांच और तेलंगाना में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति|

महाराष्ट्र की घटना के बाद जिस प्रकार की प्रक्रिया सामने आई और ठाकरे बंधुओं ने एक मंच पर आकर उसे प्रस्तुत किया, उसे मराठी गौरव की तरह प्रचारित किया, उससे आरएसएस के एजेंडे पर पर्दा डालने की कोशिश की गई| इसके लिए ठाकरे बंधुओं और शिवसेना के पुराने इतिहास का भी योगदान हैl लेकिन इस बार तो भाजपा भी पीछे नहीं थीl भाजपा के कुख्यात सांसद निशिकांत दुबे ने तो ठाकरे बंधुओं को महाराष्ट्र से बाहर निकलने की चुनौती देते हुए कहा कि हिन्दी भाषी जनता आपको पटक-पटक कर मारेगी| हमेशा की तरह भाजपा ने यदि इस बयान की निंदा नहीं की है, तो साफ है कि भाजपा पूरी तरह से निशिकांत दुबे के साथ है|

मगर हमें यह समझना होगा कि यह हिंदी और मराठी भाषा का विवाद नहीं हैI इसकी बुनियाद में आरएसएस की विचारधारा है | हिन्दू राष्ट्र के उसके लक्ष्य के तीन स्तंभ हैं : हिन्दी, हिन्दू और हिंदुस्तान| इसलिए वह बार-बार हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रचारित करती है, लेकिन जन प्रतिरोध के बाद उसे अपने कदम वापस खींचने पड़ते हैंl इस बार भी यही हुआ और देवेन्द्र फड़नवीस सरकार को अपना आदेश वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा हैl

मगर असली सवाल यह है कि इस आदेश को जारी करने की आवश्यकता क्या थी? यह वैज्ञानिक तथ्य है कि बच्चे की प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा में ही होनी चाहिएI मातृभाषा से बच्चे सिर्फ शीघ्र शिक्षा ही ग्रहण नहीं करते हैं, बल्कि उनका मानसिक विकास भी तेजी से होता हैl प्राथमिक शिक्षा के बाद बच्चे पर निर्भर करता है कि वह कौन-कौन सी भाषा सीखना चाहता हैl संघ और भाजपा की नीयत पर संदेह लाजमी हैl वह सीआरपीसी, आईपीसी की धाराओं को बदल कर भारतीय दंड संहिता और भारतीय न्याय संहिता कर चुकी हैl दक्षिण भारत के राज्य इसका विरोध कर चुके हैंI गृह मंत्री अमित शाह तो बार-बार हिंदी थोपने और हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित कर चुके हैंI इसलिए महाराष्ट्र सरकार की देवेन्द्र फड़नवीस सरकार के निर्णय को भी आरएसएस के ‘हिन्दी, हिन्दू हिन्दुस्तान’ के नारे की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिएI यही वजह है कि निशिकांत दुबे ने पटक-पटक मारने की धमकी दी है, क्योंकि केंद्र और महाराष्ट्र में संघ नियन्त्रित सरकारें होने के बाद भी वह संघ के एजेंडे को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैंl

बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 7.9 करोड़ मतदाताओं में से 4 करोड़ मतदाताओं को संदेह के घेरे में खड़ा करने के चुनाव आयोग के तुगलकी आदेश के लिए भले ही चुनाव आयोग को दोषी ठहराया जा रहा है, लेकिन इसके पीछे भी आरएसएस का एजेंडा ही काम कर रहा हैl उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग इस पुनरीक्षण में खुद की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता को ही दांव पर लगा रहा है। चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता पहचान पत्र भी अब प्रामाणिक दस्तावेज नहीं है। यदि यह मतदाता संदेह के घेरे में हैं, तो वह चुनाव भी संदेह के घेरे में आ जाते हैं, जिनमें इन मतदाताओं ने मतदान किया है। फिर उन लोकसभा और विधानसभा चुनावों का क्या होगा, जिन्हें निष्पक्ष और शांतिपूर्ण करवाने के दावे चुनाव आयोग करता रहा हैl

किन्तु इस सबसे संघ और भाजपा को क्या? वह चुनाव आयोग ही नहीं, सारी संवैधानिक संस्थाओं को हास्यास्पद और संदेहास्पद बनाकर उनकी विश्वसनीयता को खतम करना चाहते हैंl उनकी साजिश तो सिर्फ आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाना हैl बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण में भी यही हो रहा है।

उल्लेखनीय है कि संघ शुरू से ही सबको समान मताधिकार देने का विरोधी रहा हैl गुरु गोलवलकर ने लोकतन्त्र और सबको मताधिकार दिए जाने का मज़ाक उड़ाते हुए इसे मुंड गणना कहा थाl संघ का मानना है कि सिर्फ समझदार और सम्मानित लोगों को ही वोट का अधिकार दिया जाना चाहिएI वे महिलाओं, शूद्रों, गरीबों और संपत्तिहीन नागरिको को वोट का अधिकार देने के पक्ष में नहीं थेl

चुनाव आयोग का यह कदम संघ की इसी मंशा को पूरा करता हैI जो 11 दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, उन्हें गौर से देखने से चुनाव आयोग के बहाने संघ की मंशा सामने आ जाती हैl इन दस्तावेजों में से एक है मेट्रिक (दसवीं) का सर्टिफिकेट| अभी अखबारों में आ रही जानकारी के अनुसार 18 साल के ऊपर की सिर्फ 14.7 फीसद बिहारी आबादी ही मेट्रिक पास हैl इसका अर्थ यह है कि 85.3 प्रतिशत बिहारी मतदाताओं के पास यह दस्तावेज नहीं हैI प्रमाणिक दस्तावेजों में सरकारी नौकरी का दस्तावेज या सरकारी नौकरी से पेंशन का दस्तावेज मान्य हैl सरकार के अपने आंकड़ों के अनुसार ही सरकारी कर्मचारी देश की श्रमशक्ति का मात्र 1.4 प्रतिशत हैंI इसका मतलब तो यह हुआ कि 98.6 फीसद श्रमशक्ति के पास प्रस्तुत करने के लिए यह दस्तावेज भी नहीं हैI चुनाव आयोग कह रहा है कि संपत्ति का दस्तावेज दिया जा सकता हैI फाउंडेशन ऑफ एग्रीकल्चर स्टडीज के अनुसार 43 प्रतिशत ग्रामीण आबादी भूमिहीन हैl 25 फीसद गरीबों के घर भी दूसरे की भूमि पर बने हैंl भूमिहीनों में दलित और आदिवासियों का प्रतिशत तो दिल दहलाने वाला होगाI

इसके पीछे का संदेश साफ हैl दलितों, आदिवासियों, गरीब भूमिहीनों को मताधिकार से वंचित किया जाएI इसीलिए तो चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता पहचान पत्र, सरकार द्वारा जारी आधार कार्ड, राशन कार्ड, मनरेगा कार्ड को अमान्य किया जा रहा है। सरकारी पेंशनभोगियों को तो मताधिकार का अधिकार होगा, लेकिन विधवा, वृद्धा, असहाय, विकलांग लोगों को दी जाने वाली पेंशन दस्तावेज नहीं माना जाएगा|

चुनाव आयोग द्वारा बिहार में पैदा किए जा रहे हालात को दो तरह से देखा जाना चाहिएI अभी तक चुनाव आयोग की कोशिश होती थी कि किसी भी पात्र व्यक्ति का नाम मतदाता सूची से जुड़ने से न रहे जाएI पहली बार चुनाव आयोग यह साजिश कर रहा है कि कैसे मतदाता सूची से अधिकतम मतदाताओं को काटा जाएI भाजपा की सरकार और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी यदि चुप हैं, तो साफ है कि चुनाव आयोग उन्हीं के इशारे पर यह कर रहा है, क्योंकि वह संघ के एजेंडे पर काम कर रहा है।

तीसरा है तेलंगाना में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति| कहने को यह भाजपा का अंदरुनी मामला हैl उपलब्ध सूत्रों के मुताबिक सिर्फ तेलंगाना राज्य ही है, जहां प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति पर असंतोष खुल कर सामने आया हैl भाजपा के विधायक ने इस नियुक्ति के विरोध में इस्तीफा दिया है और भाजपा नेतृत्व ने इस्तीफे को स्वीकार भी कर लिया हैI प्रश्न यह है कि भाजपा क्यों विरोध झेल कर भी एन रामचंद्र राव को ही अध्यक्ष बनाना चाहती है? उत्तर साफ है, क्योंकि यह भाजपा और आरएसएस के मनुवादी एजेंडे के अनुरूप हैl
एन रामचंद्र राव का नाम रोहित वैमूला आत्महत्या प्रकरण में जुड़ा हुआ हैl रोहित वैमूला को यूनिवर्सिटी से निकालने के लिए एबीवीपी के नेताओं के साथ मिलकर एन रामचंद्र राव ने भी वाइस चांसलर पर दबाव बनाया था। रोहित वैमूला को पहले विश्वविद्यालय और फिर हास्टल से निकालने के बाद उसकी छात्रवृत्ति रोक देने के बाद ही उसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। रोहित की मौत पर देश भर में विरोध कार्यवाहियां होने के बाद भी केंद्र सरकार का कोई मंत्री या प्रतिनिधि रोहित की माँ राधिका से नहीं मिला थाl रोहित की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा दिलाने की बजाय नरेंद्र मोदी सरकार की पूरी कोशिश यह साबित करने की थी कि रोहित वैमूला दलित नहीं हैI और भाजपा ने वही किया है।

एन रामचंद्र राव को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर भाजपा ने उन्हें रोहित वैमूला आत्महत्या में उनके शामिल होने का इनाम दिया हैI वैसे ऐसा पुरस्कार पाने वाले वे अकेले नहीं हैंl हैदराबाद विश्वविद्यालय में एबीवीपी के नेता और रोहित और उसके संगठन अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के साथ गुंडागर्दी करने वाले सुशील कुमार को मोदी सरकार ने दिल्ली विश्वविद्यालय में अस्सिटेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति दी है।

(लेखक मध्यप्रदेश माकपा के सचिव और केंद्रीय समिति के सदस्य हैं।)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button