वास्तुकला का मोदी युग
व्यंग्य
राजेंद्र शर्मा
मोदी जी गलत नहीं कहते हैं। इन विपक्ष वालों को भारत की तरक्की मंजूर ही नहीं है। अव्वल तो ये तरक्की होने ही नहीं देंगे। और इनके रोकते-रोकते भी तरक्की हो भी जाएगी, तो ये शर्मा-शर्मी भी तरक्की का गौरव-गान नहीं करेेंगे। उल्टे जहां तक बस चलेगा, तरक्की को गिरावट ही साबित करने में जुट जाएंगे। अब संसद के टपकने का ही मामला ले लीजिए। बारिश के मौसम में संसद जरा सी टपकने क्या लगी, भाई लोगों ने ये क्या हो रहा है, कैसे हो रहा है का ऐसा शोर मचा दिया, जैसे आफत ही टूट पड़ी हो। और यह सारा हंगामा भी तब, जबकि मोदी सरकार ने कमाल की मुस्तैदी से काम किया था और पानी के टखनों से ऊपर पहुंचने से पहले ही, हर टपकन की जगह के ठीक नीचे, प्लास्टिक की बाल्टी रखवाने का इंतजाम कर दिया था। यानी टपके की जो भी बूंद आए, सीधे बाल्टी में जमा हो जाए। पानी तो सिर्फ टपक रहा था, बिना किसी को परेशान किए, लेकिन विरोधियों ने शिकायत कर-कर के बेचारी सरकार के कान खा लिए।
और बात सिर्फ विपक्ष और सरकार की कहा-सुनी तक ही रहती, तब तो फिर भी गनीमत थी। मोदी को घसीटा सो घसीटा, भाई लोगों ने मोदी जी के प्रिय वास्तुकार बिमल पटेल को भी इस झगड़े में घसीट लिया। कहते हैं कि मोदी जी ने नयी संसद बनवाई है, तो बिमल पटेल ने नई संसद बनायी है। नयी संसद में टपके का, मोदी के संग-संग बिमल पटेल को भी जवाब देना होगा। उधर मीडिया वालों ने भी 4 जून के बाद से धीरे-धीरे पल्टी मारनी शुरू कर दी है। आगे देखा न पीछे, पट्ठे गिनाने लग गए कि इस बार की बरसात में और क्या-क्या टपका है! अयोध्या में राम मंदिर के टपकने की खबर तो खैर इस बार पहली बारिश के बाद ही आ गयी थी। बारिश के बीच तक पहुंचते-पहुंचते, दिल्ली में संसद टपकने लगी, तो यूपी की विधानसभा भी कहां पीछे रहने वाली थी — उसने भी टपकना शुरू कर दिया। जहां-जहां नया निर्माण, वहां-वहां टपका!
तब तक सोशल मीडिया पर खबर चलने लगी कि टपकना सिर्फ मोदी जी के नये निर्माणों का गुण नहीं है। टपकती तो सरदार पटेल की तीन हजार करोड़ से ज्यादा वाली विशालकाय मूर्ति भी है। यानी नया हो या पुराना, मोदी जी ने जो भी बनवाया है, टपकना बनवाया है। वह तो शुक्र है मोदी के वास्तुकला विशेषज्ञों का, जो उन्होंने हमारी आंखों से भ्रम का पर्दा हटा दिया और टपकती छतों के पीछे का वास्तु चमत्कार देश को दिखा दिया। बारिश में टपकने वाली छत, वास्तुकला का खोट नहीं, डिजाइन है, नवाचार है। यह वास्तुकला की भारतीयता का उदघोष है। यह अंगरेजों की बनायी पुरानी संसद से, मोदी जी की नयी संसद की तात्विक यानी जल तत्व से जुड़ी भिन्नता है। और टपके के पानी को संचित करने के लिए रखी गयी प्लास्टिक की बाल्टी, वास्तुकला की इस भारतीयता को रेखांकित करती है, बल्कि टपके और बाल्टी का यह योग तो भारतीय वास्तुकला के नये युग का एलान है। यह वास्तुकला के नये युग की पहचान है, जिसे कई लोगों ने भारतीय वास्तुकला का मोदी युग कहना शुरू कर दिया है। बाल्टी का नीला रंग, इसमें भी मोदी जी के समावेशीपन का संकेतक हैै। विकसित भारत बनने के रास्ते पर इस महान उपलब्धि को शर्म का बायस कौन भकुआ बनाना चाहता है।