विनेश हारा नहीं करतीं !
व्यंग्यरा
राजेंद्र शर्मा
ये तो इंसाफ की बात नहीं है। विनेश फोगाट ने एक के बाद एक तीन मुकाबलों में विदेशी पहलवानों को पछाड़ कर, फाइनल तक पहुंचने का रिकार्ड बनाया पेरिस में और यहां इंडिया में भाई लोगों ने हल्ला मचा दिया कि विनेश ने, राजनीति के अखाड़े के पहलवान, ब्रजभूषण शरण सिंह को पटक दिया। कोई-कोई तो मोदी जी को पटखनी खिलवाने तक भी चला गया। कहते हैं कि इसी की खिसियाहट में तो साहब के मुंह सेे विनेश के लिए बधाई के दो शब्द तक नहीं निकले! यानी कुश्ती पेरिस में और हार-जीत इंडिया में ; कुश्ती नहीं हुई, मजाक हो गया।
पर बात इतने तक ही रहती, तो फिर बात समझ में आती थी। कहते हैं — जो जीता, सो सिकंदर। इंडिया का मुकाबला चाहे पेरिस में ही जीत रही थी, फिर भी विनेश फोगाट जीत तो रही थी। सोने की उम्मीद ही सही, पर चांदी की चमक को बाकायदा गले में डालकर दिखा रही थी। दुधारू गाय की तो दो लातें भी सहन करने में ही समझदारी मानी जाती है। पर आखिर में तो वह जीत भी नहीं रही। आखिरकार, सौ ग्राम वजन ने विनेश को ऐसा चित किया, ऐसा चित किया कि अर्श से उतारकर फर्श पर पटक दिया। पर उसके बाद भी भाई लोगों ने ब्रजभूषण शरण सिंह और मोदी जी का पीछा नहीं छोड़ा है। कोई षडयंत्र-षडयंत्र चिल्ला रहा है, तो कोई इसका इल्जाम लगा रहा है कि देश की बेटी के साथ अन्याय हो गया और राज करने वालों से ढंग से शोर भी नहीं मचाया गया। एक छोटे से देश ने तो अपने खिलाफ फैसला पलटवा लिया और अपना मैडल रखवा लिया, पर विश्व गुरु से उतना भी नहीं कराया गया। दुनिया में बजते डंके का क्या हुआ? छप्पन इंच की छाती कहां समा गयी? पर क्यों? क्यों, क्या, इच्छा ही नहीं थी। विनेश की जीत में, देश की जीत की जगह, अपनी हार जो दीखती थी! यानी चित भी विनेश की, पट भी विनेश की, ब्रजभूषणों की केवल हार!
जंतर-मंतर पर हार कर भी जीतने के बाद से इन महिला पहलवानों को हार कर जीतने की चाट लग गयी है। अब इन विनेशों को कोई हरा नहीं सकता। जंतर-मंतर पर हरा दिया, तो पलट कर पेरिस में चित कर देेंगी, विश्व मंच पर। लड़ने वाले की हार नहीं होती है!