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दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी में एससी/एसटी व ओबीसी के प्रोफेसरों को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए

आरक्षण के हिसाब से कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी में चेयरमैन बनाने की मांग

नई दिल्ली : फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस, शिक्षक संगठन के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को एक प्रस्ताव भेजा है जिसमें उन्होंने मांग की है कि 79 कॉलेज एवं अध्ययन केंद्र दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। इन कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी में एससी /एसटी व ओबीसी समुदाय के प्रोफेसरों का नाम भेजा जाए और उन्हें आरक्षण के हिसाब से गवर्निंग बॉडी में चेयरमैन व ट्रेजरार बनाया जाए। उनका कहना है कि जहाँ विश्वविद्यालय ने अपने अध्ययन केंद्र स्थापित किए हैं उनमें एससी, एसटी व ओबीसी के प्रोफेसरों को निदेशक व संयुक्त निदेशक बनाया जाए।

फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने कुलपति को भेजे गए प्रस्ताव में बताया है कि दिल्ली सरकार से संबद्ध 28 कॉलेज तथा 4 सांध्य कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी का कार्यकाल दो साल पहले समाप्त हो गया था। इन कॉलेजों की ट्रेंकेटिड गवर्निंग बॉडी में प्रोफेसरों को चेयरमैन व ट्रेजरार बनाया गया है लेकिन बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि यहाँ पर आरक्षित श्रेणी के प्रोफेसरों को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। उन्होंने बताया है कि आरक्षित श्रेणी के प्रोफेसर को नियुक्ति व पदोन्नति के समय मात्र ऑब्जर्वर के रूप में भेजा जाता है । कुछ प्रोफेसरों ने बताया है कि उन्हें विश्वविद्यालय की किसी कमेटी तक में नहीं रखा जाता है । ज्ञात हो कि दिल्ली सरकार के जिन कॉलेजों में प्रातः और सांध्य दोनों पारियों में कॉलेज चलता है वहाँ पर -6 सदस्य दिल्ली सरकार से एवं -6 सदस्य विश्वविद्यालय की ओर से रखे जाते हैं। इसके अलावा विश्वविद्यालय से दो वरिष्ठ प्रोफ़ेसर, कॉलेज प्रिंसिपल के अतिरिक्त दो शिक्षक भी रखे जाते हैं।

डॉ. सुमन ने बताया कि डीयू से संबद्ध कॉलेजों में संविधान प्रदत्त आरक्षण के हिसाब से एससी /एसटी व ओबीसी समुदाय के प्रोफेसरों को उचित प्रतिनिधित्व यदि दिया जाता है तो एससी -12, एसटी -6 एवं ओबीसी के -20 सदस्यों को गवर्निंग बॉडी में चेयरमैन बनाया जाना चाहिए। इसी पैटर्न पर ट्रेजरार भी बनाए जाने चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी मांग की है कि दिल्ली देहात के कॉलेजों में ग्रामीण पृष्ठभूमि के प्रोफेसरों को भेजे क्योंकि देखने में आया है कि विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से जिन सदस्यों को भेजा जाता है उन्हें ग्रामीण परिवेश की कोई जानकारी नहीं होती। शैक्षिक तथा गैर-शैक्षिक नियुक्तियों के समय इन कॉलेजों में गांवों के लोगों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता है जबकि वहाँ के कॉलेज ग्रामीणों द्वारा दी गई जमीन पर बने हुए होते हैं। सरकार ने जमीन लेते समय ग्राम पंचायतों से कहा था कि छात्र / छात्राओं को प्रवेश देते समय तथा शिक्षक एवं कर्मचारियों की नियुक्ति के समय ग्रामीण क्षेत्र की प्रतिभाओं को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाएगा लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन और कॉलेजों ने ऐसा नहीं किया। उनका कहना है कि हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय में स्थायी पदों पर शिक्षकों की नियुक्तियाँ की गई लेकिन गांवों की भूमि पर बने कॉलेजों ने ग्रामीण अभ्यर्थियों को अवसर नहीं दिया ।

 

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