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गजब ढा गये ’इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर’

तीसरे उर्मिल रंग उत्सव का समापन

लखनऊ । हमारे देशी व्यवस्था तंत्र खासकर पुलिसिया तंत्र में भ्रष्टाचार कितने गहरे पैठा हुआ है। इसकी एक बानगी सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने अपनी व्यंग कथा इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर में अपने पैने व्यंग्य बाणों के मार्फत चुटीले तौर पर बयान की है। नौटंकी रूप में यह कथा उर्मिल रंग महोत्सव की पांचवी और आखिरी शाम संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह गोमतीनगर के मंच पर थी।

इस कहानी का नौटंकी आलेख शेषपाल सिंह शेष ने तैयार किया है।नीरज कुशवाहा के संगीत, परिकल्पना और निर्देशन में डा.उर्मिल कुमार थपलियाल फाउंडेशन द्वारा आयोजित उर्मिल रंग उत्सव में प्रस्तुत की कहानी में इंस्पेक्टर मातादीन हनुमान भक्त है और भारत में पुलिस विभाग का एक सीनियर इंस्पेक्टर है। वह वैज्ञानिकों के इस कथन को झूठा मानता है कि चंद्रलोक में मनुष्यों की आबादी नहीं है। फिंगरप्रिंट विशेषज्ञ के विरोध करने पर कि ’पाए गए निशान मुलजिम के नहीं हैं’,

मातादीन स्वीकार करते हैं और उसे सजा देकर ही छोड़ते हैं। विज्ञान हमेशा मातादीन से मात खा जाता है।भारत की तरफ से सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अंतर्गत चांद सरकार ने भारत सरकार से एक पुलिस ऑफिसर की मांग की जो कि चांद पर जाकर वहां की सुस्त पुलिस को चुस्त दुरुस्त कर दें। इस प्रकार आदान-प्रदान योजना के अंतर्गत पुलिस विभाग के सीनियर इंस्पेक्टर मातादीन को चांद पर भेजा गया।

चांद सरकार का एक यान पृथ्वी पर आया और मातादीन अपने सहायकों से विदा लेकर उन्हें तरह-तरह की हिदायत देकर एफआईआर तथा रोजनामचे का नमूना रखकर यात्रा प्रारंभ कर देते हैं। चांद पर पहुंचते ही उनका भव्य स्वागत होता है। पुलिस लाइन का मुआयना प्रारंभ कर वे बैरक में हनुमान मंदिर बनवाते हैं। वह चांद प्रशासन को प्रभावित कर उन्हें समझाते हैं कि उनकी पुलिस के काहिल होने का कारण अधिक वेतन है। चांद सरकार पुलिस का वेतन कम कर देती है। वेतन कम होते ही पुलिस विभाग में मुस्तैदी बढ़ गई, आपराधिक मामलों की भरमार हो गई।

चांद सरकार में इंस्पेक्टर मातादीन के कौशल की धूम मच गई। पुलिस की काहिली दूर करने के बाद में मातादीन पुलिस विभाग की जांच विधि में सुधार करना चाहते थे। इसी बीच आपसी मारपीट में एक आदमी मर गया। इसमें उन्होंने उस व्यक्ति को मुलजिम बनाया, जिसने घायल की सहायता की क्योंकि खून के धब्बे उसी के कपड़ों पर पाए गए। उन्होंने पकड़े गए व्यक्ति से जुर्म का कुबूलनामा दिलवा दिया। चांद पर सभी पुलिस अधिकारी सकते में आ गए।

उनके ऊपर निरपराध को दंड देने का अभियोग लगा, परंतु उन्होंने अधिकारियों को शांत करने के लिए एक डायलॉग बताया कि जब कोई पूछे तो साफ कह दिया जाए- ’ये ऊपर की बात है’। मातादीन की शिक्षा से चांद के पुलिस भी सारे पुलिसिया हथकंडों में माहिर हो गई। कत्ल के केस में पकड़े गए भले मनुष्य को सजा हो गई। थोड़े ही दिनों में चांद पर अव्यवस्था का आलम हो गया। लोग किसी की मदद से कतराने लगे कि मदद करने वाले जुर्म में फंस जाएंगे। अंत में रहस्योद्घाटन होता है कि यह पूरी घटना इंस्पेक्टर मातादीन का दुःस्वप्न थी। सपने से उठने के बाद वे बजरंगबली से क्षमा मांगते हैं।

मंच पर मातादीन की मुख्य भूमिका में सुरेंद्र के साथ नट- शशि कुमार, नटी- राजेश, मंत्री- त्रिवेंद्र, सिपाही 1- संजय, सिपाही 2- राम अनुग्रह, चंद्रयान व पीड़ित- निशांत, चांद पुलिस ऑफिसर व पीड़ित- आशीष बने।मातादीन के साथियों में प्रेरणा, आशीष, संध्या, आदित्य, यश व अंगद और चांद पुलिस में आदित्य, शशांक व यश शामिल थे। मंच पार्श्व के पक्षों में नक्कारा वादन हरिश्चंद का, ढोलक वादन विशाल समुद्रे का रहा। मंच सामग्री में अंगद व गुलाब, प्रकाश में रंजीत के अलावा श्री विनायक प्रॉपर्टीज का योगदान रहा।

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