‘केवट के राम’ ने दी विरासत संजोने की प्रेरणा
उर्मिल रंग उत्सव : दूसरी शाम
लखनऊ । आधुनिक भौतिकवादी संसाधनों के दौर में हम अपनी परम्पराओं को नकारते लोक संस्कारों से कितना दूर हो चुके हैं, पर वह हमारी अमूल्य धरोहर हैं। यही विरासत हमें सांसारिक रहते हुये अध्यात्म दर्शन से जोड़ती हैं।
नयी पीढ़ी को ऐसे ही संदेश देती नौटंकी केवट के राम का दर्शनीय मंचन कौशांबी के कलाकारों ने आज शाम संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह गोमतीनगर में किया। उर्मिल रंग उत्सव की दूसरी शाम संतोष कुमार के निर्देशन में द्वारिका लोकनाट्य कला उत्थान समिति की यह प्रस्तुति दर्शकों की भावनाओं को छू गयी।
डा.उर्मिल कुमार थपलियाल फाउंडेशन की ओर से नौटंकी विधा पर केन्द्रित पांच दिवसीय उत्सव कानपुर शैली की इस नौटंकी की कथा का मूल स्रोत तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस है। निर्देशक ने स्वयं कथा को चौबोला, बहरेतवील जैसे नौटंकी के छंदों में गढा़ है।
श्रीराम, लक्ष्मण व सीता मैया निषाद राज के साथ श्रृंगवेरपुर गंगा तट पर पहुंचते हैं निषाद राज केवट को बुलाते हैं। राम केवट से कहते हैं केवट भैया हमें उसे पार जाना है अपनी नाव लाइए और हमें पार कर दीजिए तभी केवट बोलता है न प्रभु भला मैं अपनी नाव पर आपको कैसे पार करूं कहीं आपकी चरण धूल लगने से मेरी नाव नारी हो गई तो हम सब प्राणी भूखे मर जाएंगे तभी प्रभु श्री राम केवट से कहते हैं मैं आपकी बात को समझा नहीं केवट बोलता है प्रभु मैं अपने नाव पर आपको बैठाने से पहले आपके चरण पखारूंगा, तब मैं अपनी नाव पर आपको बैठाऊंगा।
श्रीराम केवट को आदेश देते हैं। केवट पर्वतीय को बुलाता है। कठौता लेकर गंगाजल से प्रभु श्री राम के चरणों को धोता है। उसके बाद नाव पर बैठा कर प्रभु श्री राम व लक्ष्मण सीता मैया को पार उतार देता है। प्रभु श्री राम उतराई स्वरूप मणि मुंदरी देते हैं। केवट नहीं लेता और कहता है- हे प्रभु! मैं गंगा किनारे का केवट हूं और आप भव सिंधु के केवट हैं। जब मैं आपके परम धाम को आऊंगा, आप भी मुझे भवसागर पार करा दीजिएगा। हिसाब बराबर हो जाएगा।
मंच पर राम के रूप में राम प्रसाद के साथ लक्ष्मण- विजय कुमार, सीता- दिनेश कुमार, सुमंत- संतोष, केवट- लालू प्रसाद, पर्वतीय- रतन कुमार, मंगरुआ- राकेश कुमार, निषाद राज- संतोष चौधरी व उद्घोषक- घनश्याम गौतम बने थे।
हारमोनियम पर संतोष कुमार, नक्कारे पर संदीप कुमार के साथ अन्य वाद्यों पर संतोष, अशर्फीलाल व झींगई लाल थे। वस्त्र विन्यास आत्माराम की व रूपसज्जा राजकिशोर उपाध्याय की रही।