श्रद्धांजलि:मन मोहने वाले सिंह नहीं रहे
राजेश बैरागी
क्या पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जानबूझकर खामोश रहते थे? 2004 में प्रधानमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा का एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिलने गया था। निश्चित ही उस प्रतिनिधिमंडल ने उनसे सरकार के कामकाज और नीतियों को लेकर उनकी कमियां गिनाई होंगी। मनमोहन सिंह काफी देर तक उनकी बातों को गौर से सुनते रहे परंतु जब भाजपाइयों की शिकायतों का सिलसिला नहीं थमा तो उन्होंने आडवाणी समेत सभी लोगों को ऐसा फटकारा कि वे भाग खड़े हुए। मनमोहन सिंह के संबंध में यह अभूतपूर्व घटना थी। इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए उनसे पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने कहा,-अच्छा हुआ, मैं उस प्रतिनिधिमंडल में शामिल नहीं था।’ दरअसल नौकरशाह से राजनीति में आए मनमोहन सिंह राजनेता कभी भी नहीं हुए। कुछ वाचाल प्रवृत्ति वालों को छोड़कर अमूमन सभी नौकरशाह खामोशी से अपने काम को अंजाम देते हैं।पी वी नरसिम्हा राव के साथ उनकी जोड़ी कमाल की थी। मनमोहन सिंह स्वभाव वश जरूरत भर बोलते थे और नरसिम्हा राव शातिराना तरीके से जानबूझकर मौन साधे रखते थे। मनमोहन सिंह संभवतः हर सवाल का जवाब देने की कला से अंजान थे। देश के वित्तमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल अविस्मरणीय था, प्रधानमंत्री के तौर पर उन्हें अपयश नहीं मिला तो यश भी नहीं मिला।उस समय ऐसा लगता था जैसे देश में कोई प्रधानमंत्री नहीं है। उनके मंत्रीमंडल के अधिकांश सदस्यों पर उनका कोई नियंत्रण नहीं था। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठकों में उनकी उपस्थिति प्रतीक मात्र होती थी।दस जनपथ से चलने वाली सरकार के मुखिया होने और न होने में कोई अंतर नहीं था। क्या ऐसा प्रधानमंत्री होने से मनमोहन सिंह इंकार कर सकते थे?यह प्रश्न भारत का प्रधानमंत्री होने की चमक के समक्ष बौना है। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हालांकि अपनी राजनीतिक विवशताओं के चलते कई अवसरों पर उनकी आलोचना ही नहीं की बल्कि उनकी खिल्ली भी उड़ाई परंतु उनके द्वारा शुरू की गई किसी योजना को बंद करने का साहस नहीं किया। यही नहीं उनसे कई बार देश की अर्थव्यवस्था को लेकर मार्गदर्शन भी लिया। सादगी, सज्जनता, मितभाषी होने तथा खामोशी से अपना काम करते जाने वाले मनमोहन सिंह ने कल रात बेहद खामोशी से इस दुनिया से विदा ले ली। उन्हें एक कुशल राजनीतिज्ञ के तौर पर चाहे याद न रखा जाए परन्तु एक कुशल अर्थशास्त्री और एक अच्छे व्यक्ति का तमगा उनसे कोई नहीं छीन सकता है।
(नेक दृष्टि)