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कोठी मार्टिन, अब लामार्टीनियर कालेज

लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतें सीरीज-6

के. सरन

अवध के चौथे नवाब आसफुद्दौला द्वारा लखनऊ में बनवाई गई मशहूर इमारतों का सिलसिला खत्म करने के पहले लखनऊ में बनी कई अन्य मशहूर इमारतो के जनक क्लाड मार्टिन का जिक्र करना जरूरी है।क्लाड मार्टिन फ्रांस के लियोन शहर में सन् 1735 में जन्मा था और 1785 में फ्रेंच ईस्ट इन्डिया कम्पनी के साथ एक अंगरक्षक के रूप में भारत आया था। मगर ब्रिटिश आर्मी में अपना फायदा देखकर वह अपनी काबलियत से अंग्रेजी सेना में दाखिल हो गए और जनरल के पद तक पहुंच गये। वह दक्षिण भारत से जब अवध आए तो अवध के शासक आसफुद्दौला थे। मार्टिन एक कुशल इन्जीनियर जैसे काबिल और बहुत अच्छे आर्किटेक्ट भी थे। उन्हें इमारतें बनवाने का बड़ा शौक था।जल्दी ही उनकी आशफुद्दौला से मुलाकात और मित्रता हो गई। मार्टिन बहुत शिष्ट और योग्य तथा कुशल व्यापारी और लखनऊ से दिली लगाव रखने वाले थे इसलिए आसफुद्दौला उनकी बहुत कद्र करने लगे थे।

एक दिन क्लाड मार्टिन ने उनको एक बहुत शानदार बल्कि आलीशान इमारत का नक्शा दिखाया और उनके लिए ये इमारत बनवाने का प्रस्ताव रखा।आसफुद्दौला इस इमारत का नक्शा देख कर विभोर हो गए और मार्टिन से दस लाख अशर्फियों में इस इमारत को बनवा कर देने का सौदा करके, इकरारनामा कर लिया।
गोमती के दाहिने किनारे शहर के एक छोर पर सन् 1794 में यह दुर्ग जैसा भव्य -महल बन कर तैयार हुआ।
योगेश प्रवीन जी के लिखे इतिहास के अनुसार- “पांच मंजिल की यह वैभव पूर्ण इमारत अपने रोमन आर्चेज,अनोखे मेहराब और ओरियंटल गैलरी के लिए प्रसिद्ध है।ऊपर कोने और कंगूरों पर बनी यूनानी देवताओं तथा अप्सराओं जैसी सुन्दर मूर्तियां इसे परिस्तान के किसी रूमानी महल का रूख प्रदान करते हैं।”
इस इमारत के बनते- बनते आसफुद्दौला चल बसे और उनके न रहने पर अवध के छठे नवाब सआदत अली खां जो जरा कंजूस तबियत के थे उन्होने आसफुद्दौला और मार्टिन के बीच हुए इकरार नामे को मानने से इन्कार कर दिया।नतीजतन यह कोठी मार्टिन की मिल्कियत बनी।
यद्यपि यह आसफुद्दौला की नहीं बन पाई तो भी उनके जमाने में बनी भव्य और शानदार इमारत है जो आज भी मौजूद है। मार्टिन की भी सन् 1800 में मृत्यु हो गई।
उस समय इस कोठी की बाहरी सजावट का काम चल रहा था। मार्टिन यद्यपि कोठी फरहत बख्श में रहते हुए मरे थे पर वे नि:संतान थे और वे नही चाहते थे कि अवध का शासक इसे लावारिस जागीर घोषित कर इस पर कब्जा कर ले इसलिए उन्होंने इस कोठी के विषय में वसीयत कर दी थी जिसके अनुसार उनके मरने के बाद उनके मृत शरीर को इसी शानदार इमारत मे दफन करने की इच्छा दर्ज थी। तदनुसार मेजर जनरल मार्टिन का मकबरा इसी इमारत के नीचे बने तहखाने में बना है। इस बेमिसाल मकबरे पर “लेबर-एट-कांस्टेटिशिया” लिखा हुआ है जो फ्रेंच भाषा का एक सिद्धांत है।
दूज के चांद के आकार में बने इस महल में दोनो ओर बीस- बीस गेट नुमा दरों वाली दो मंजिला इमारत है जो दस -दस दरों वाली वीथिका( गैलरी) से मुख्य इमारत से जुड़ती है। इस के बीचो-बीच सात दरवाजो के प्रवेशद्वार बने हैं।
कोठी के आगे एक बहुत बड़ा चबूतरा है जिस पर एक घंटे के आकार का धातु का बना प्रतीक चिह्न बना है। चबूतरे से झील की तरफ उतरने के लिए सीढ़ियां बनी है।इमारत के भीतर का खास हिस्सा लखनवी शान के प्रतीक किसी दीवानखाने से कम नहीं है।इसमें रंगीन मीनाकारी दिवार और छतों पर बनी है। बीच के हाॅल में रंग- बिरंगे कांच से तैयार किया गया प्रभु यीशू मसीह का दर्शन है। एक गोल कमरे में मार्टिन की सीने तक की प्रतिमा लगी है। जमीन से 18 फिट नीचे जाने के लिए सीढ़ियां बनी हैं।इनसे उतरने के बाद एक तहखाने में पहुंचते हैं जहां मार्टिन की मजार बनी है।
मार्टिन ने अपनी वसीयत में उसकी जन्म भूमि फ्रांस स्थित लियोन ,कलकत्ता और लखनऊ में गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए संस्थान बनवाये थे ।उसने बच्चों की शिक्षा के लिए डेढ़ लाख रूपये छोड़ा था।उन्होंने अपनी वसीयत में इस इमारत को शिक्षण संस्थान के रूप में स्थापित और सुरक्षित करने की बात भी कही थी और इसे एक समिति को सौंपने की बात की थी पर उनकी गोद ली बेटी का पति बताकर उनके तथाकथित दामाद ने स्वयं को मार्टिन का वारिस और इस इमारत का मालिक घोषित करवाने की न्यायिक कार्यवाही शुरू करवा दी । वसीयत संबंधी यह मुकदमा लखनऊ से होते हुए कलकत्ता तक गया । तब भारत का सुप्रीमकोर्ट कलकता में था।वहां से इग्लैंड के प्री-वी -कौंसिल में गया और लगभग 39 साल चला। मुकदमें बाजी के बाद अंत में यह इमारत शिक्षण संस्थान की सम्पत्ति घोषित हुई। इसके बाद सन् 1940 में इसे ला- मार्टिनियर कालेज हो गया।हालांकि मार्टिन इसे सभी धर्मों और वर्ग के खासतौर पर गरीब बच्चों की शिक्षा और रिहाइश (होस्टल के रूप में) भोजन व्यवस्था सहित करने के इच्छुक थे पर आज ऐसा नहीं है।
इस लामार्टिनियर कालेज के सामने झील में 125 फिट ऊंची मीनार है जो ज्ञान स्तम्भ कहलाती है।
आज नवाब आसफुद्दौला की प्रेरणा से बनी मार्टिन की यह इमारत वाकई ज्ञान का बहुत बड़ा स्तम्भ है जिसने हमारे देश को बड़े- बड़े पदों पर बैठे आई०ए0एस0, वैज्ञानिक और भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में देश का नाम रोशन करने वाले, नागरिक दिये हैं ।इस तरह यह इमारत दुनियां में लखनऊ का नाम भी रोशन कर रही है।

सर्वाधिकार सुरक्षित।

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