नवाबी दौर में बनी पहली इमारत आसफ़ी कोठी
लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतें सिरीज
के.सरन
अवध के चौथे नवाब आशफुद्दौला का कार्य काल
1775 से 1797 तक था। वह अवध की राजधानी फैजाबाद से लखनऊ लाए थे।आशफुद्दौला एक रहमदिल, नेक, दयालू शिया मुसलमान थे।उन्होने अपनी रियाया (प्रजा) में कभी भेद नहीं किया।
उनके राज्य में कोई भूखा नहीं सोता था। उन्होने लखनऊ को सजाने के लिए एक से बढकर एक खूबसूरत इमारतें बनवाई जिनमें आसफी कोठी,आसफी इमाम बाड़ा(बड़ा इमाम बाड़ा ) ,आसफी मस्जिद,शीशमहल, रूमी दरवाजा,आदि प्रमुख हैं।
आज हम आसफ़ी_कोठी की बात करेंगे।
आशफुद्दौला जब 1775 में नवाब बनने के बाद,फैजाबाद से अवध की राजधानी लखनऊ लेकर आए तो अपनी रिहाइश के लिए उन्होने एक कोठी का निर्माण कराया।पहले के मकानों खासतौर से मुस्लिमों के मकानों में आंगन, दहलीज, दिवानखाने, और जनानखानें आदि चीजे जरूरी मानकर, जरूर बनवाए जाते थे। कोठियों में यह चीजें नहीं बनती थीं।वह अंग्रेजियत की पहचान होती थीं इसलिए कोठी की शक्ल वाले मकान अंग्रेजी तर्ज पर बनते थे जिनमें ये सब चीजें नहीं बनवाई जाती थीं।
आशफुद्दौला शौकीन तबियत के थे उन्होने अपना रिहाइशी मकान अंग्रेजी शैली वाली कोठी में की शक्ल में बनवाया और नाम दिया आसफ़ी कोठी।
यह एक शानदार इमारत थी जो गोमती के दाहिने किनारे
पर हुसैनाबाद इलाके में बनवाई गई थी।यह इलाका शांत और खुला था जहां की आबो -हवा सेहत के लिए मुफीद थी इसलिए इस जगह को चुना गया था।
आशफुद्दौला का यह दौलत खाना जो लगभग 250 वर्ष
पूर्व लखनऊ की शान हुआ करता था और जो सभी नवाबों के लिए मुबारक ड्योढ़ी माना जाता था ,गाथिक शैली के चार पहल वाले स्तम्भों और ऊंची मेहराबों वाला था। इस इमारत के ऊपरी हिस्से की मुंडेर सुराहीदार डिजाइन के पायों से बनी थी।
अब इसका अस्तित्व समाप्त प्राय है।यह खंडहर की शक्ल मे तब्दील हो चुकी है। जहां कभी अवध के सरताज रहा करते थे उन कमरों के फर्श और दिवारों में जंगली पौधों की झाड़ दिखती है। मेहराबों और स्तम्भों की दिवारों पर काई जमी है ।जगह -जगह दिवारों में खड्ढे पडे हैं।देख-रेख के अभाव में अब यह नवाबी वैभव की भूली हुई दास्तान बन कर रह गई है। (सर्वाधिकार सुरक्षित )