कुर्बान जाऊं इन सर्वज्ञ टीवी एंकरों और उनके मेधावी प्रसारकों की कुशाग्रता पर !
के. विक्रम राव
12 सितंबर 2024 की संध्या बुलेटिन में घंटे भर तक कांग्रेस के स्वर्गीय अध्यक्ष और सोनिया के हरीफ सीताराम केसरी बक्सरवाले को इन महारथियों ने मार डाला। पहली बार केसरी का निधन 24 अक्टूबर 2000 को हुआ था। तब वे सांसद थे और पार्टी मुखिया देवगौड़ा को हटाकर प्रधानमंत्री बनने की कोशिश में रहे।
यह भयंकर भूल-सुधार देर से हुआ। तब तक फूहड़ मजाक फैल चुका था। जैसे द्रोणपुत्र अश्वत्थामा नहीं, वरन् कोई अन्य मरा था। बाद में पता चला नामाराशी हाथी था। कामरेड येचूरी सीताराम हमारे संगोत्रीय नियोगी विप्र थे। हम तेलुगुभाषी अपनी वंशानुगत नाम को पहले जोड़ते हैं।
आम कम्युनिस्ट शिक्षा पर बहुत जोर देते हैं। हर माता-पिता सीताराम जैसा ही ऊंचा पढ़ा लिखा बेटा चाहेगा। सीताराम भारत के राजनेताओं में बहुत कम उच्चकोटि की शिक्षा पाये लोगों में थे।
सीतारामजी को मैंने उनके जेएनयू के छात्रों के हुजूम का नेतृत्व करते पहली बार (जून 1976) में तीस हजारी कोर्ट के सामने देखा था। हम वहां तिहाड़ जेल से बड़ौदा डाइनामाइट केस के मुलजिम बनाकर लाये गये थे। वे सब नारा लगा रहे थे : “जेल के फाटक टूटेंगे। हमारे साथ ही छूटेंगे।” तब जॉर्ज फर्नांडिस, मैं (अभियुक्त नंबर 2), प्रभुदास पटवारी (बाद में राज्यपाल, तमिलनाडु) तथा वीरेन शाह (पश्चिम बंगाल के राज्यपाल) तथा 19 अन्य मीसा कानून के तहत कैद लोग थे। सबको आजीवन कारावास या फांसी मिलती यदि इंदिरा गांधी दुबारा प्रधानमंत्री बनती।
येचूरी कांग्रेस के डार्लिंग थे। निजी संस्कारों से बुर्जवा है। सरदार हरकिशन सिंह सुरजीत के लाड़ले रहे है। तभी से सोनिया (कांग्रेस) से याराना है। अमूमन चुनावी हार के बाद पार्टी मुखिया पद तज देता है। मगर ऐसा करना नैतिकता होगी, जो क्रांतिकारी धर्मिता नहीं होती है। कमज़ोरी होती है। यहाँ नई पीढ़ी को बता दूँ की भारतीय राजनीति के दलदल में माकपा एकमात्र ऐसी पार्टी थी जो निख़ालिस सैद्धान्तिक थी। उसके पुरोधा गांधी वादी सादगी के मिसाल थे। इनमे एक आज भी बचे हुए है, सौ साल के वीएस अछूतानंदन।
सीताराम की सियासत समझ के परे थी। इंदिरा गांधी ने जेएनयू के कुलाधिपति से उन्होंने हटवाया। मगर उनकी बहू सोनिया से बड़ी यारी थी। उनकी नजर में राजीव गांधी एक मूढ़, अपरिपक्व प्रधानमंत्री थे पर उनका निकट प्रतिद्वंदी मूर्खता में उनका पुत्र राहुल गांधी हैं जिसके सीताराम सरपरस्त रहे।
आपसी वैमनस्य का ही अंजाम था कि सीताराम येचूरी को वृंदा करात अर्थात इस श्रीमती प्रकाश करात ने ही राज्यसभा से बाहर ही रखा। हानि दोनों की निजी थी। पार्टी को ढेर सारी क्षति भी हुई।
फिलहाल हम श्रमजीवी पत्रकारों का कामरेड सीताराम को लाल सलाम। कामरेड येचूरी के साथ हम पसीनाजीवी लोग कविता दुहराते हैं : “हम मेहनतकश जब इस दुनिया से अपना हिस्सा मांगेंगे। एक खेत नहीं एक बाग नहीं, हम पूरी दुनिया मांगेंगे।”