उत्तर-प्रदेशबड़ी खबरलखनऊ

नारी अस्मिता के सदियों से उठे सवालों का लय भरा जवाब

डा.थपलियाल की लिखी नृत्यनाटिका ‘आज की द्रौपदी’ का कल्चरल क्वेस्ट द्वारा मंचन

                  चेरिश टाइम्स न्यूज़
         लखनऊ । ‘द्रौपदी’ अब महाभारत कालीन द्रौपदी नहीं रह गयी है बहुत आगे बढ़ी है और अब एक दलित द्रो पदी’ देश के सर्वोच्च पर आरूढ़ होने जा रही है। ऐसे में आज शाम महाभारत कालीन द्रौपदी के बहाने सदियों से उठ रहे सवालों के जवाब नृत्य गतियों में देखना-पाना रंगप्रेमियों के लिए फिर एक सुखद अनुभव रहा। कथक संयोजनों में डा.थपलियाल की लिखी नाटिका का प्रदर्शन संग गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह गोमतीनगर के मंच पर डा.उर्मिल कुमार थपलियाल फाउण्डेशन के उर्मिल रंग उत्सव की अंतिम शाम सुरभि सिंह के निर्देशन में किया गया।

द्रौपदी के रूप में मंच पर उतरी सुरभि के संग कल्चरल क्वेस्ट के अन्य कलाकारों ईशा रतन, मीशा रतन, एकता मिश्रा, स्निग्धा सरकार, संगीता कश्यप और अंकिता सिंह द्वारा मंच पर उतरी यह प्रस्तुति समकालीन स्त्रियों को आत्मविश्वास से लबरेज करती है।
महाभारत और द्रौपदी की कथा लगभग सभी जानते हैं। प्रस्तुति कथक की शास्त्रीयता और अभिनय की कमनीयता के साथ मंच पर रखने का रचनात्मक प्रयास है। महाभारत की तत्कालीन द्रौपदी ने जो कुछ सहा अकेले सहा, प्रतिरोध के संस्कार वहां उसमें नहीं थे। आज भी स्थितियों में कुछ ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ, युग परिवेश बदला है पर सामान्य स्त्री की त्रासदी नहीं। आज की नारी कर्तव्यनिष्ठ होते हुए भी अपने समान अधिकारों की मांग कर रही है।

आज की द्रौपदी का आलेख करीब पांच साल पहले जब डा.थपलियाल ने रचा था तो उन्होंने नहीं सोचा होगा कि कुछ ही सालों बाद एक द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति का पद सुशोभित कर भारतीय नारियों की नयी पहचान बनने के साथ प्रेरणा भी बनेगी। तब उन्होंने प्रस्तुति को समकालीन स्त्री विमर्श के दायरे में महिला सशक्तीकरण का एक प्रतीक और विषय को पुरुष सत्ता के खिलाफ बगावत न बताते हुए जाहिर किया कि यह एक व्यंग्य है, एक भंगिमा है और पर इस प्रस्तुति की समसामयिक सार्थकता भी है। सामान साझेदारी की मांग करती शालीनता भरी यह प्रस्तुति एक नए तेवर और टिप्पणी के साथ परंपरागत द्रौपदी के चरित्र का गीत संगीत और कथक गतियों में एक नया रूप है। आज की नारी पहले से कहीं ज्यादा जागरूक और चेतना संपन्न है। अकेले द्रोपदी की वेदना को न तब किसी ने समझा था ना अब कोई समझ सकता है इसलिए इस प्रस्तुति का समकालीन शंखनाद यही है कि द्रौपदी अब दुशासन का वध करेगी।
बंगलुरु के प्रवीण डी राय के संगीत निर्देशन में तैयार इस प्रस्तुति की रिकॉर्डिंग में डा.थपलियाल, सुरभि सिंह, संगम बहुगुणा और तबलानवाज विकास मिश्र के तबले के साथ उनके स्वर भी सुनाई दिए। लाइट डिज़ाइनिंग प्रणव बर्मन की रही।

Cherish Times

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button