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झूला गीत के साथ कार्यशाला का समापन

रिमझिम बरसे कारी बदरिया... भीजे चटक चुनरिया ना...

लखनऊ। झूला गीत के साथ मंगलवार को लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित आनलाइन सावन गीत कार्यशाला का समापन हुआ। लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित कार्यशाला में 58 प्रतिभागियों ने सम्मिलित होकर पारम्परिक ऋतु गीत का प्रशिक्षण प्राप्त किया।

संस्थान की सचिव डा. सुधा द्विवेदी ने बताया कि पारम्परिक लोक गीतों को नयी पीढ़ी में हस्तांतरित करने के उद्देश्य से आयोजित सावन गीत कार्यशाला में 58 प्रतिभागियों सम्मिलित हुए। दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत संकाय की सहायक आचार्य डा. स्मृति त्रिपाठी के निर्देशन में हुए इस सात दिवसीय सारस्वत आयोजन में राग देश में दादरा महाराजा केंवड़िया खोल रस की बूंद पड़े, पारम्परिक बनारसी कजरी आयो सावन अधिक सुहावन वन में बोलने लागे मोर, मीरजापुरी कजरी रिमझिम बरसे कारी बदरिया भीजे चटक चुनरिया ना, बनारसी झूला गीत झूलन नहीं जइबे गुईंया श्याम संग झूला, राग भूपाली में नाव भजन जय महेश जटाजूट कंठ सोहे कालकूट जन्म मरण जाए छूट नाम लेत जाके, पीलू दादरा में कजरी प्यारे नंद के किशोर चलो कुंजन की ओर देखो नभ घनघोर घेरी आई बदरी, पारम्परिक कजरी सावन झरी लागेला धीरे धीरे, झूला गीत जमुना किनारे पड़ा हिंडोल बंशी वाले सांवरिया, बनारसी कजरी वीरन भैया अइलै अनवैया सवनवा में ना जइबे ननदी, झूला गीत देखो सांवरे के संग गोरी झूलेले हिंडोला तथा अवध का झूला सावन आया रस बरसाया धरती के हरित श्रृंगार रे जैसे गीत सिखाये गये। कार्यशाला में आकाशवाणी के ग्रेडेड आर्टिस्टों के साथ ही नवोदित प्रतिभाओं ने गायन प्रशिक्षण प्राप्त किया।

संस्थान की सचिव डा. सुधा द्विवेदी ने बताया कि पिछले आठ वर्षों से लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा पारम्परिक गीतों की कार्यशालायें निरन्तर आयोजित हो रही हैं जिसमें लोग उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। समापन संध्या में सभी प्रतिभागियों ने सिखाये गीतों की प्रस्तुति भी दी जिसकी कार्यशाला निर्देशक ने भूरि भूरि प्रशंसा की।

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