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बाबू सत्यानारायण सिन्हा सिर्फ बिहार ही नहीं, पूरे देश के अग्रणी नेता थे : राकेश कुमार सिंह

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में मनाई गई बाबू सत्यानारायण सिन्हा की 125वीं जयंती

नई दिल्ली : देश की लोकतांत्रिक नींव रखने वाले अग्रणी नेता स्वर्गीय बाबू सत्यानारायण सिन्हा की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में आज प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में एक श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन हुआ।

इस कार्यक्रम का आयोजन उनके पौत्र, वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व कांग्रेस प्रवक्ता (बिहार व झारखंड) श्री राकेश कुमार सिंह द्वारा किया गया। इस आयोजन के जरिए एक ऐसे नेता को श्रद्धांजलि अर्पित की गई, जिन्होंने न केवल बिहार की राजनीति को दिशा दी, बल्कि स्वतंत्र भारत के लोकतांत्रिक संस्थानों की नींव को भी मजबूती प्रदान की।

बिहार के एक जमींदार परिवार में जुलाई 1900 में जन्मे सत्यानारायण सिन्हा ने मुज़फ्फरपुर जिला स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और पटना विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ने के बाद 1924 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की और जल्द ही राजनीति में सक्रिय हो गए।

1926 में वे बिहार विधान परिषद के सदस्य बने और 1934 में केंद्रीय विधान सभा में पहुंचे, जहां कांग्रेस पार्टी के प्रमुख सचेतक के तौर पर कार्य किया। संविधान निर्माण के दौरान वे बिहार से संविधान सभा के सदस्य चुने गए और कांग्रेस विधानसभा दल के मुख्य सचेतक के रूप में अपनी भूमिका निभाई। उस दौर में पार्टी व्हिप जैसी कोई औपचारिक व्यवस्था नहीं थी, फिर भी उन्होंने सदन में समन्वय बनाए रखने के लिए तत्कालीन संसाधनों के माध्यम से ज़िम्मेदारी निभाई।

स्वतंत्रता के बाद वे लगातार तीन लोकसभाओं के सदस्य रहे और कांग्रेस के प्रमुख सचेतक बने रहे। 1963-64 में उन्होंने सूचना एवं प्रसारण और संसदीय कार्य मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद 1964 से 1967 तक वे संचार और संसदीय कार्य मंत्री रहे। 1971 में उन्हें मध्य प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने छह वर्षों तक सेवा दी।

लोकसभा में वे पहले ऐसे नेता बने जिन्हें प्रधानमंत्री न होते हुए भी सदन का नेता नियुक्त किया गया—जो उनके प्रति संसद के भीतर गहरे सम्मान को दर्शाता है।

इस मौके पर श्री राकेश कुमार सिंह ने कहा, “बाबूजी का सार्वजनिक जीवन सेवा, सादगी और सिद्धांतों का प्रतीक था। वे लोकतंत्र की भावना में विश्वास रखते थे और हर मुद्दे पर संवाद और संवैधानिक प्रक्रिया को प्राथमिकता देते थे। आज जब राजनीति में ध्रुवीकरण बढ़ रहा है, तब उनके विचार और मूल्यों की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है।”

उन्होंने यह भी कहा कि स्वतंत्र भारत की सूचना नीति को आकार देने में बाबूजी की अहम भूमिका रही। देश के पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कायम रखते हुए राष्ट्रीय एकता के विचार को मजबूत किया।

बिहार की राजनीति की चर्चा करते हुए राकेश कुमार सिंह ने कहा कि बाबूजी ने हमेशा जनसंपर्क और जनभावनाओं को प्राथमिकता दी। “वे सीधे लोगों से जुड़ते थे, और जनहित को अपनी प्राथमिकता मानते थे। आज के नेताओं को भी उतनी ही संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता दिखाने की ज़रूरत है,” उन्होंने कहा।

कांग्रेस प्रवक्ता के रूप में बिहार और झारखंड में सक्रिय रह चुके राकेश कुमार सिंह ने अपने नाना के मूल्यों—ईमानदारी, सेवा और राष्ट्रीय एकता को आगे बढ़ाने का संकल्प दोहराया।

कार्यक्रम का समापन पुष्पांजलि अर्पित कर, उनके जीवन के प्रेरक प्रसंगों को साझा करते हुए और उनके दिखाए मार्ग पर चलने की सामूहिक अपील के साथ हुआ। यह आयोजन न केवल एक महान नेता को श्रद्धांजलि था, बल्कि भारत के राजनीतिक विमर्श में सिद्धांत आधारित नेतृत्व की आवश्यकता का भी स्मरण था।

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