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सामाजिक न्याय के पुरोधा न बने राहुल गांधी : डॉ.सुमन

कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी/एसटी व ओबीसी कोटे के पदों को क्यों नहीं भरा

नई दिल्ली : फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस (शिक्षक संगठन) ने लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय में आकर एससी/एसटी, ओबीसी आरक्षण पर बोलते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय समेत तमाम केंद्रीय विश्वविद्यालयों और संस्थानों में एससी / एसटी तथा ओबीसी वर्गों के लिए आरक्षित प्रोफेसर पदों पर भर्ती नहीं किए जाने का आरोप लगाया है। फोरम का कहना है कि राहुल गांधी की खोखली बयानबाजी डीयू के शिक्षकों और छात्रों को मूर्ख नहीं बना सकती। आजकल राहुल गांधी व उनके साथी खुद को सामाजिक न्याय का मसीहा और भारतीय संविधान का रक्षक बता रहे हैं। जब 2004 से 2014 तक यूपीए सत्ता में थीं तो उन्होंने अपने कार्यकाल में केंद्रीय विश्वविद्यालयों व डीयू कॉलेजों में आरक्षित सीटों को क्यों नहीं भरा। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में जब आरक्षण लागू करने की शुरुआत हो रही थीं तो उनकी पार्टी के शिक्षक संगठन इंटेक ने दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक पदों पर एससी/एसटी अभ्यर्थियों के आरक्षण का पुरजोर विरोध किया था।

फोरम के चेयरमैन डॉ.हंसराज सुमन ने कहा कि कांग्रेस की लगभग छह दशक तक सरकार रही लेकिन फोरम व अन्य शिक्षक संगठनों के सड़कों पर उतरने व एससी/एसटी कमीशन के हस्तक्षेप के बाद सन् 1997 में जाकर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षण लागू हुआ। केंद्रीय विश्वविद्यालयों व संबद्ध कॉलेजों में आरक्षण लागू होने के बाद भी उन्हें नॉट फाउंड सुटेबल किया जाता रहा या यह कहा गया कि अभ्यर्थी उपलब्ध नहीं हुए। बता दे कि कांग्रेस ने विश्वविद्यालय शिक्षकों की नियुक्तियों में ओबीसी आरक्षण 2007 में लागू किया। उन्होंने बताया है कि सन् 2008 से सन् 2014 तक यूजीसी व शिक्षा मंत्रालय द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी/एसटी के अभ्यर्थियों के लिए स्पेशल भर्ती अभियान चलाने के लिए सर्कुलर जारी किए लेकिन उन पदों को भरा नहीं। लगभग छह दशक तक कांग्रेस की सरकार रहने के बावजूद क्यों विश्वविद्यालयों /कॉलेजों में 1997 में आरक्षण लागू किया गया ? दिल्ली विश्वविद्यालय में कांग्रेस के शिक्षक संगठन ने खुद शिक्षक नियुक्तियों में आरक्षण का विरोध किया था और डीयू में 13 पॉइंट रोस्टर को लागू करने वाले कांग्रेस द्वारा नियुक्त कुलपति ही थे।

डॉ. हंसराज सुमन ने कांग्रेस के कार्यकाल में प्रशासन द्वारा आरक्षण की अवहेलना किए जाने पर कहा कि जब यूपीए के पास सामाजिक न्याय करने का अवसर था तब यूपीए 2 शासन ने भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों को संविदा/तदर्थ/अंशकालिक शिक्षकों का केंद्र बना दिया। इतना ही नहीं उन्होंने सन् 1997 में एससी/एसटी आरक्षण के बाद पहली बार सीएएस ( कॅरियर एडवांस स्कीम ) के माध्यम से आरक्षित उम्मीदवारों को शामिल करने का समय आया तो सन् 2008 से सभी पदोन्नति (प्रमोशन) पर रोक दी गईं। उन्होंने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय में स्थाई नियुक्ति और पदोन्नति प्रक्रिया एनडीए के सत्ता में आने के बाद ही शुरू हुई। उस समय सवर्ण कुलपति ने कुछ खास जातियों को विशेष लाभ देते हुए स्थाई नियुक्ति की थी। डॉ.सुमन ने बताया कि पूर्व कुलपति प्रो.त्यागी के जाने के पश्चात ही दिल्ली विश्वविद्यालय व उससे संबद्ध कॉलेजों में शिक्षकों के नियमितीकरण और पदोन्नति शुरू हुई। डीयू और संबद्ध कॉलेजों में लगभग 4800 से अधिक स्थायी नियुक्तियां हुईं, जिनमें से 2700 से अधिक नियुक्तियां एससी, एसटी,ओबीसी, ईडब्ल्यूएस और पीडब्ल्यूबीडी श्रेणियों से हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय में पिछले सात वर्षों में सर्वाधिक शिक्षकों की नियुक्तियाँ हुई हैं जिसमें सभी वर्ग वर्गों के पदों पर ये नियुक्तियाँ हुई हैं। पदोन्नति प्राप्त सभी शिक्षकों की बकाया राशि का भुगतान किया गया।

डॉ.सुमन ने बताया है कि केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान के नेतृत्व में शिक्षा मंत्रालय के सामाजिक न्याय एजेंडे और वर्तमान एनडीए सरकार ने शिक्षकों की गरिमा को बहाल किया। डॉ.सुमन ने बताया है कि उनके फोरम यह सुनिश्चित किया है कि निकट भविष्य में एनएफएस किए गए पदों को आरक्षित वर्गों से भरा जाए। उन्होंने यह भी बताया है कि दिल्ली सरकार द्वारा वित्तपोषित 12 कॉलेजों में शिक्षकों के नियमितीकरण को लंबे समय तक रोके रखा गया था। फोरम ने डूटा अध्यक्ष व कुलपति से मिलकर दिल्ली सरकार के पूर्ण वित्त पोषित कॉलेजों में भी जल्द से जल्द नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने की मांग की है जिसे जल्द ही पूरा किया जाएगा। बता दे कि इन कॉलेजों में 900 से अधिक पदों में से 500 से अधिक आरक्षित पदों को स्थायी आधार पर भरा जाना है।

 

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