राजनाथ सिंह अब हो गए (बबर) शेर सिंह !

के. विक्रम राव
इस बार पाकिस्तान के हमले के नतीजे पर अलग राय व्यक्त की जा रही है। सबसे उम्दा प्रतिक्रिया मेरे बड़े पुत्र सुदेव ने व्यक्त की। सुदेव प्रबंधन निष्णात है और मुंबई में अमेरिकी कंपनी एक्सनश्योर में मैनेजिंग डायरेक्टर है। उसने फोन पर मुझसे कहा : “यह युद्ध नहीं है। इस्लामी पाकिस्तान की प्रसव पीड़ा है। नए राष्ट्र बलूचिस्तान को पाकिस्तान जन्म देने वाला है।” घटना क्रम को देखते हुये विश्वास हो जाता है कि 1971 में पूर्वी पाकिस्तान टूटा बांग्लादेश बना। अब पठान टूटेंगे। यूं भी सिवाय पंजाबी मुसलमानों के, और भारत छोड़कर पाकिस्तान गए महजिरों के अलावा अब वहां नागरिक है ही कौन ?
बलूच और अन्य पठान शुरू से ब्रिटिश राज के खिलाफ थे और इन महजिर मुसलमानों के खिलाफ थे। बलूच गांधी अब्दुस समद खान और सीमांत गांधी अब्दुल गफ्फार खान तो पाकिस्तानी जेल में ही ताउम्र रहे। मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तानी वायु सेना के माध्यम से बलूचिस्तान को जबरन पाकिस्तान का प्रांत बना दिया था जबकि महाराजा हरि सिंह ने 1947 में स्वेच्छा से भारतीय गणराज्य में कश्मीर को विलीन कर दिया था। यह तो जवाहरलाल नेहरू की भीषण गलती थी कि उन्होंने वादा कर दिया था कि जनमत संग्रह कराया जाएगा।
पाकिस्तान से भारत का दूसरा युद्ध “ऑपरेशन जिब्राल्टर” के नाम से 1966 में शुरू हुआ, जिसके अनुसार पाकिस्तान की योजना जम्मू कश्मीर में सेना भेजकर वहां भारतीय शासन के विरुद्ध विद्रोह शुरू करने की थी। इसके जवाब में भारत ने भी पश्चिमी पाकिस्तान पर बड़े पैमाने पर सैन्य हमले शुरू कर दिए। सत्रह दिनों तक चले इस युद्ध में हज़ारों की संख्या में जनहानि हुई थी। आख़िरकार सोवियत संघ और संयुक्त राज्य द्वारा राजनयिक हस्तक्षेप करने के बाद युद्धविराम घोषित किया गया। भारत और पाकिस्तान के 1966 में नेताओं ने ताशकन्द समझौते पर हस्ताक्षर किये। कई सूत्रों के अनुसार युद्धविराम की घोषणा के पाकिस्तान की अपेक्षा भारत मजबूत स्थिति में था।
तब पाँच फुटे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जिन्हें लोग “नन्हे” कहकर पुकारते थे, ने छः फुटे मार्शल अयूब खान को हराया था। मगर ताशकंद जाकर कमाई पूंजी गवां दी। सोवियत रूस का दबाव था।
अगला युद्ध 1971 में हुआ था जो मार्शल सैम मानिक शाह ने लड़ा था और भारत के लिए जीता था। यह बात 1971 की है। बांग्लादेश के रूप में नए राष्ट्र की स्थापना हुई थी।
हालांकि 1999 में चौथा युद्ध कारगिल के नाम से हुआ। संयोग था उस वक्त की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई दिल्ली से लाहौर बस द्वारा गए थे। इनके साथ फिल्म स्टार देवानंद भी थे। प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने भारत के प्रधानमंत्री को माला पहनकर जोर-शोर से स्वागत किया था। ठीक उसी वक्त लाहौर से 375 किलोमीटर दूर कश्मीर की ठंडी पहाड़ी कारगिल में जनरल में परवेज मुशर्रफ ने कब्जा कर लिया था। दिल्ली लौटते ही सूचना मिलने पर अटलजी ने नवाज शरीफ को फोन किया और पूछा : “मियांजी आपकी फौज ने क्या कर डाला ?” तो ऐसे रहे धोखे और साजिश से भरे हुये भारत-पाक रिश्ते।
मगर पहलगाम हत्याकांड के नतीजे में हो रहा पांचवा युद्ध पिछले सात दशकों से अलग है। अनूठा है क्योंकि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं न कि जवाहरलाल नेहरू जिनकी प्रतिलिपि अटल बिहारी वाजपेई थे। अब पाकिस्तान सबक सीखेगा, सौ बार सोचेगा कि भारतीय सीमा में सेना भेजें ?
अमूमन युद्ध कम ही निर्णायक होते हैं। सौदा पट जाता है, समझौता हो जाता है। मगर अबकी नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं और अपेक्षा है कि कोई ढुलमुल नीति या नजरिया नहीं अपनाया जाएगा।
नई परिस्थितियों के आधार पर शांतिप्रिय और विनम्र माने जाने वाले राजनाथ सिंह का नया नाम रखा जाए “रिपुदमन सिंह, अरिमर्दन सिंह, बैरीनाशक सिंह और दुश्मनों के भंजक सिंह।” नरेंद्र मोदी यह नामकरण अपने रक्षामंत्री का कर दें, यह ही उचित होगा।