बिरेनवा तू भी !
राजेंद्र शर्मा
भई ये बात अपनी समझ में तो आयी नहीं। मणिपुर वाले बिरेन सिंह ने माफी मांग ली। दबा-छुपा के नहीं, बाकायदा माफी मांग ली। यह कहकर माफी मांग ली कि खून-खराबा बहुत हुआ। अब और नहीं। पौने दो साल के बाद, अब और नहीं। नये साल में और नहीं! साल नया हो या पुराना, अपने राज में खून-खराबे के लिए माफी कौन मांगता है, जी। ऐसों की चली, तब तो बात गुजरात के 2002 के खून-खराबे के लिए माफी की मांग तक भी पहुंच जाएगी। अब क्या सिर्फ नये साल के चक्कर में मोदी जी भी माफी मांगने लग जाएं? बिरेनवा, तूने ये अच्छा नहीं किया!
कमजोर दिल वालों की यही प्राब्लम है। खुद तो कमजोरी दिखाते ही दिखाते हैं, अपने गुरुओं की भी बदनामी कराते हैं। बताइए, नया साल भी कोई मौका होता है, खून-खराबा कराने की माफी मांगने का? पर इन बिरेन सिंहों को कोई कैसे समझाए। जरा सा खून-वून देखा नहीं, लगे माफी-माफी करने! ऊपर से इसकी हुज्जत और कि यह दिल की कमजोरी का मामला हर्गिज नहीं है। अगर दिल वाकई कमजोर होता, तो मणिपुर में खून-खराबा शुरू होने के सात-आठ महीने के बाद, जब पहला-पहला नया वर्ष आया था, क्या तभी माफी नहीं मांग ली होती? बल्कि छ:-सात महीने इंतजार भी क्यों करना था, खून-खराबा जब जोरों पर था, तभी माफी मांग ली होती। बल्कि कोरी माफी भी क्या मांगना था? माफी के लिए ही सही, पब्लिक से कुछ भी क्यों मांगना था; पब्लिक के आगे हाथ क्यों फैलाना था? उल्टे पब्लिक के मुंह पर इस्तीफा ही दे मारा होता। पर नहीं किया। एक और नया साल आने तक इंतजार किया, तब कहीं जाकर माफी मांगी है। मौतें सैकड़ों में, तब माफी डेढ़ साल से ज्यादा उधार रह सकती है, तो गुजरात की हजारों मौतों के मामले में माफी भी, दो दर्जन साल तो उधार रह ही सकती है।
खैर! दिल की कमजोरी दिखाना अपनी जगह, पर बिरेनवा ने विश्व गुुरु की शिक्षा की कुछ इज्जत तो रख ही ली है; माफी चाहे मांग ली है, पर इस्तीफा देने की गलती नहीं की है। और जब चेले तक ने इस्तीफा देने की गलती नहीं की है, तो गुरु जी भला इस्तीफा लेने की गलती क्यों करते? साल नया हो, तो हुआ करे, न चेला, न गुरु, इस्तीफे की उधारी उतारने का कोई जिक्र नहीं है।