संभल का बवाल सरकार और हिंदुत्ववादियों की ओर से प्रायोजित था : भाकपा
मुख्यमंत्री को जांच के केन्द्र में लाते हुये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जांच कराई जाये
लखनऊ : विधानसभा चुनावों और उपचुनावों में विभाजनकारी हिन्दुत्व की राजनीति के माध्यम से अपने पक्ष में परिणाम आने से उत्साहित भाजपा और उसके मुख्यमंत्री ने राजनीतिक लाभ के उद्देश्य से सांप्रदायिक विभाजन को और गहरा करने को ही संभल में उकसावे की कार्यवाही कराई जिसमें 4 लोग मारे गये और अनेक घायल हुये हैं। इस शर्मनाक घटना के लिये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की इच्छानुकूल काम करने वाला प्रशासन भी पूरी तरह जिम्मेदार है। न्यायपालिका द्वारा कांड की ज़िम्मेदारी निर्धारित की जानी चाहिये और जनता के सामने सच लाकर दोषियों को माकूल सजा दी जानी चाहिये।
संभल में साजिशन भड़काई गई हिंसा पर प्रतिक्रिया जताते हुये भाकपा राज्य सचिव मण्डल ने कहा कि सरकारी तंत्र और सरकार के पिट्ठू चैनलों ने सारा दोष अल्पसंख्यक समुदाय के ऊपर मढ़ दिया है और पत्थरबाजी को मुख्य मुद्दा बना कर असल घटनाचक्र पर पर्दा डाला जा रहा है।
गौर करने की बात यह है कि वे मुट्ठी भर लोग कौन हैं जो हिन्दुओं के हितैषी बन कर जगह जगह विवाद भड़काने के लिये मस्जिदों को प्राचीन मंदिर बता कर विवाद खड़ा कर अदालतों का दरवाजा खटखटाते हैं। क्या इन्हें सरकार का संरक्षण प्राप्त नहीं हैं? यदि नहीं तो उन पर सांप्रदायिक उकसाबे की धाराओं के तहत अभियोग दर्ज क्यों नहीं किया जाता?
यहाँ यह गौर तलब है कि स्थानीय अदालत में 19 नवंबर को वाद दाखिल हुआ, बिना दूसरे पक्ष को सुने उसी दिन कमीशन नियुक्त कर दिया गया, कमीशन उसी दिन जांच करने पहुँच गया, आखिर यह जल्दबाज़ी किस अदालती सिध्दांत के तहत की गयी।
सवाल यह भी है कि रविवार को तड़के दोबारा कमीशन जांच के लिये किस उद्देश्य से पहुंचा? उससे पहले ही बड़े पैमाने पर पुलिस की तैनाती इस बात का सबूत है कि प्रशासन को व्याप्त तनाव की जानकारी थी। फिर दोनों पक्ष के अगुवा लोगों को विश्वास में क्यों नहीं लिया गया? कमीशन के सुबह इतनी जल्दी पहुंचने का क्या उद्देश्य था?
क्यों पुलिस क्षेत्राधिकारी ने उपस्थित लोगों को समझाने के बजाये उन्हे परिणाम भुगतने की धमकी दी? बल प्रयोग किया। ये सारी बातें इस बात का सबूत हैं कि बवाल भड़काने की स्क्रिप्ट जिला प्रशासन ने लिखी थी। उत्तर प्रदेश में पुलिस और प्रशासन भाजपा और उसके मुख्यमंत्री की राजनीति को प्रमोट करने का साधन बन गया है।
गोब्वेल्सनुमा झूठ फैलाया जा रहा है कि मौतें अपने ही समुदाय द्वारा चलाई गयी गोलियों से हुयी। दमन चक्र चलाते हुये दर्जनों लोगों को गिरफ्तार किया गया है और अन्य अनेकों को जेल में ठूँसने की तैयारी है। आखिर पत्थरबाजी से पहले प्रशासन द्वारा क्या क्या किया गया वह सामने नहीं लाया जा रहा। एकतरफा प्रचार अभियान जारी है। विपक्ष के नेताओं को लपेटने की भी तैयारी है। इस सबकी घोर निन्दा की जाती है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री एक तरफ उत्तर प्रदेश में दंगे न होने देने की डींगें हाँकते हैं, वहीं जब जरूरत होती है दंगा करा देते हैं। हाल ही में बहराइच में भी प्रायोजित हिंसा कराई गयी।
भाकपा के राष्ट्रीय सचिव डा. गिरीश एवं राज्य सचिव अरविन्दराज स्वरूप ने ज़ोर देकर कहा कि राज्य सरकार की मशीनरी से निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्होने मांग की कि सर्वोच्च न्यायालय जांच कराये तथा जांच के दायरे में उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया को भी लाया जाये। स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों को तत्काल बदला जाये और गहन जांच कर उन्हें सजा दिलाई जाये। मृतकों और घायलों को उचित मुआबजा दिया जाये।
दोनों नेताओं ने आमजनों से शान्ति बनाए रखने की अपील की है।