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बिगुल मज़दूर दस्ता, टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन और भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने मजदूर दिवस पर सभा आयोजित कर रैली निकाली

बरगदवा- गोरखपुर। बिगुल मज़दूर दस्ता, टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन और भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के संयुक्त तत्वावधान में अन्तर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस (1 मई) के अवसर पर आज बरगदवा के फर्टिलाइजर मैदान में मजदूरों की सभा का आयोजन किया गया। सभा के बाद बरगदवा औद्योगिक इलाके में मार्च निकाला गया।

कार्यक्रम की शुरुआत मई दिवस के शहीद अमर रहें’, ‘ मई दिवस की विरासत ज़िन्दाबाद’, ‘ चार लेबर कोड रद्द करो, श्रम कानूनों को लागू करो’ जैसे गगनभेदी नारों के साथ किया गया। इसके बाद शहीदों की याद में क्रान्तिकारी गीत प्रस्तुत किया गया।


कार्यक्रम का संचालन कर रहे बिगुल मज़दूर दस्ता के अविनाश ने कहा कि मई दिवस की विरासत संघर्षों की विरासत है। लेकिन आज इसकी विरासत पर धूल-मिट्टी डाली जा रही है और इस दिन को कुछ रस्मी कार्यवाइयों तक सीमित कर दिया गया है। आज से 137 वर्षों पहले मई दिवस के वीर शहीदों – पार्सन्स, स्पाइस, एंजेल, फिशर और उनके साथियों के नेतृत्व में शिकागो के मजदूरों ने आठ घण्टे के कार्यदिवस के लिए एक शानदार लड़ाई लड़ी थी। तब हालात ऐसे थे कि मजदूर कारखानों में बारह, चौदह और सोलह घण्टों तक काम करते थे।

काम के घण्टे कम करने की आवाज उन्नीसवीं शताब्दी के मध्‍य से ही यूरोप, अमेरिका से लेकर लातिन अमेरिकी और एशियाई देशों तक के मजदूर उठा रहे थे। पहली बार 1862 में भारतीय मजदूरों ने भी इस माँग को लेकर कामबन्दी की थी। 1 मई, 1886 को पूरे अमेरिका के 11,000 कारखानों के तीन लाख अस्सी हजार मजदूरों ने आठ घण्टे के कार्यदिवस की माँग को लेकर हड़ताल की थी। शिकागो शहर इस हड़ताल का मुख्य केन्द्र था। वहीं 4 मई को इतिहास-प्रसिद्ध ‘हे मार्केट स्क्वायर गोलीकाण्ड’ हुआ। भीड़ में बम फेंकने के फर्जी आरोप (बम वास्तव में पुलिस के उकसावेबाज ने फेंका था) में आठ मजदूर नेताओं पर मुकदमा चलाकर पार्सन्स, स्पाइस, एंजेल और फिशर को फाँसी दे दी गयी। अपने इन चार शहीद नायकों की शवयात्रा में छह लाख से भी अधिक लोग सड़कों पर उमड़ पड़े थे। पूरे अमेरिकी इतिहास में इतने लोग केवल दासप्रथा समाप्त करने वाले लोकप्रिय अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की हत्या के बाद, उनकी शवयात्रा में ही शामिल हुए थे। शिकागो की बहादुराना लड़ाई को ख़ून के दलदल में डुबो दिया गया, पर यह मुद्दा जीवित बना रहा और उसे लेकर दुनिया के अलग-अलग कोनों में मजदूर आवाजें उठाते रहे। काम के घण्टे तय करने की लड़ाई उजरती ग़ुलामी के खिलाफ इंसान की तरह जीने की लड़ाई थी। यह पूँजीवाद की बुनियाद पर चोट करने वाली लड़ाई थी। यह मजदूर वर्ग की बढ़ती वर्ग-चेतना का, उदीयमान राजनीतिक चेतना का परिचायक थी। इसीलिए मई दिवस को दुनिया के मेहनतकशों के राजनीतिक चेतना के युग में प्रवेश का प्रतीक दिवस माना जाता है।


मजदूर वर्ग का इतिहास पिछले डेढ़ सौ से भी अधिक वर्षों के संघर्षों का इतिहास है। इतिहास की शिक्षाएँ वर्तमान को समझने में मदद करेंगी और पुनर्नवा भविष्य-स्वप्नों को नयी विधि से परियोजनाओं में ढालने का मार्ग प्रशस्त करेंगी। इसलिए यह मायूसी का नहीं, बल्कि नये संकल्पों का समय है।
आज हमारा मुख्य कार्यभार मज़दूर वर्ग को शिक्षित-प्रशिक्षित करना है जिससे वह आगे बढ़कर व्यवस्थागत संकट को क्रान्तिकारी दिशा दे सके। आज एकतरफ आम मेहनतकश आबादी का जीना दूभर हो गया है, महंगाई अपने चरम पर है, कर्मचारियों के हकों पर भी हमले जारी हैं, हर दिन छात्र – नौजवान कहीं न कहीं फांसी का चूम रहे हैं। फिर भी समाज में चुुप्पी छाई है।

दूसरी तरफ प्रतिक्रियावादी फासीवादी ताकतें लोगों को बाटने के लिए जगह-जगह उन्माद भड़का रही हैं। तमाम संशोधनवादी ट्रेड यूनियन इसी व्यवस्था के भीतर कुछ दुवन्नी-चवन्नी की लड़ाई में मज़दूर वर्ग को उलझाएं हैं। आज मज़दूर वर्ग उसके असली मिशन से परिचित करवाए बिना क्रान्तिकारी परिवर्तन संभव नहीं है।


कार्यक्रम में कार्यक्रम में अंजलि, सुरेश, शेषनाथ,दीपक, माया, मुकेश, प्रीति, प्रियांशु, राजू, फौज़दार आदि शामिल रहे।

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