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फैसलों के बदले नियुक्तियों से न्यायपालिका की छवि खराब हुई है : शाहनवाज़ आलम

साप्ताहिक स्पीक अप # 135 में बोले कांग्रेस नेता

लखनऊ : लखनऊ की ऐतिहासिक टीले वाली मस्जिद को हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा मन्दिर बताने वाली याचिका का ज़िला अदालत द्वारा स्वीकार कर लिया जाना पूजा स्थल अधिनियम 1991 का उल्लंघन है। वहीं अपनी नौकरी के आखिरी दिन ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा का अधिकार देने वाले बनारस के ज़िला जज अजय कृष्ण विश्वेश को शकुंतला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय का लोकपाल नियुक्त किया जाना जजों की निष्पक्षता पर संदेह को और पुख्ता करता है। ये दोनों उदाहरण न्यायपालिका के एक हिस्से के पूरी तरह सत्ता के साथ खड़े हो जाने के प्रमाण हैं।

ये बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 135 वीं कड़ी में कहीं।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व में लड़ी गयी स्वतंत्रता आंदोलन के गर्भ से स्वाभाविक सेकुलर राष्ट्र का उदय हुआ था। भारत को सेकुलर बनाने के लिए किसी तरह के धोखे या संस्थाओं का दुरूपयोग नहीं किया गया था। लेकिन भाजपा को भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए जजों, अफसरशाहों, और मीडिया का नैतिक पतन कराना पड़ रहा है। उसे तथ्यों के बजाए आस्था पर फैसले देने वाले जजों पर निर्भर रहना पड़ रहा है जिन्हें मनमाफिक फैसलों के बदले रिटाएरमेंट के बाद लोकपाल, उप लोकायुक्त और गवर्नर बनाना पड़ रहा है। देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए भाजपा समर्थक पत्रकारों को मुसलमानों के खिलाफ़ झूठी खबरें दिखानी पड़ती हैं जिनपर जुरमाना भी लगता है।

उन्होंने कहा कि अगर संवैधानिक संस्थाएँ ईमानदारी से अपनी ज़िम्मेदारी निभाएं तो भाजपा के हिंदू राष्ट्र के एजेंडे में वो सबसे बड़ी बाधा साबित होंगी इसीलिए मोदी सरकार में एक रणनीति के तहत संस्थाओं में भ्रष्ट लोगों को नियुक्त किया जा रहा है। जिसमें सबसे बुरी स्थिति न्यायपालिका की है जहाँ सरकार के हितों से जुड़े मामलों को सरकार के पसंदीदा जजों की बेंच में ट्रांसफ़र करने के लिए नियमों तक का उल्लंघन किया जा रहा है।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश की न्यायपालिका में ऐसा उदाहरण नहीं मिलेगा जहाँ शांति की गारंटी देने वाले पूजा स्थल अधिनियम जैसे कानून को खत्म करने की कोशिश खुद सर्वोच्च न्यायालय के कुछ जज कर रहे हों। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार न्यायपालिका के एक हिस्से को भ्रष्ट कर अपने एजेंडे को देश पर थोप रही है इसलिए नागरिक समाज को भी न्यायपालिका के फैसलों की समीक्षा करते रहने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों को न्यायपालिका के भ्रष्टाचार पर खुल कर अपना पक्ष रखना चाहिए।

 

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