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AIPSO की उत्तर प्रदेश में पहलकदमी समिति के संयोजक डा. गिरीश की प्रबुध्दजनों से मार्मिक अपील-

ऐप्सो ( AIPSO ) को जानिये और पुनर्गठन की कोशिश कीजिये।

प्रस्तावना-

अखिल भारतीय शान्ति एवं एकजुटता संगठन (All India Peace and Solidarity Organization) एक लोकतान्त्रिक और बहुलवादी संगठन है जो द्रढता के साथ विश्व शान्ति के लिये टिके रहते हुये राष्ट्रों के बीच और विश्व की जनता के बीच एकजुटता  के लिये डटा रहता है।

ऐप्सो (AIPSO) मानवता की तरक्की और कल्याण में विश्वास रखता है, जो कि युध्द और जीत, शोषण, भेदभाव, बहिष्करण, संकीर्णतावाद, सांप्रदायिकता, नस्लभेद, रूढ़िवाद, कट्टरवाद से मुक्त वातावरण में ही संभव है और जहां सभी मनुष्यों के साथ गरिमा और बराबरी का वरताव किया जाता है; और जहां प्राक्रतिक संसाधनों को भावी पीढ़ियों के लिये संरक्षित रखा जाता है। इस तरह इसका कार्यक्षेत्र और दायित्व काफी व्यापक हैं।

अखिल भारतीय शान्ति एवं एकजुटता संगठन आवश्यक रूप से एक अपक्षपातपूर्ण, नागरिक समाज संगठन है जो स्वतन्त्रता को प्यार करने वाले जनता के हर हिस्से को साथ लाता है, लोकतान्त्रिक मूल्यों में विश्वास रखता है, सामाजिक न्याय के लिये संघर्ष करता है, सभी मनुष्यों का सम्मान करता है, तथा शान्ति एवं सद्भाव के वातावरण में रहना चाहता है, सामूहिक रूप से कार्य करता है तथा ऊपर्युक्त लक्ष्यों को हासिल करने को हर संभव प्रयास करता है।

संक्षिप्त ऐतिहासिक प्रष्ठभूमि-

अखिल भारतीय शान्ति एवं एकजुटता संगठन हमारे देश के उपनिवेशवाद- विरोधी स्वतन्त्रता संग्राम की परंपराओं को, जिन्होने हमें सिखाया कि स्वतन्त्रता का संघर्ष अलग- थलग रह कर नहीं चलाया जा सकता, को गर्व के साथ आत्मसात करता है। स्वाधीनता और स्वतन्त्रता के लिये संघर्षरत अन्य लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करना, स्वाधीनता स्वतन्त्रता के लिये किए जा रहे  हमारे अपने संघर्ष का अभिन्न हिस्सा है। ये आदर्श ऐप्सो के कार्यक्रमों को परिभाषित करते हैं, जिसकी कि स्थापना 1951 में भारतीय गणतन्त्र के गठन के तत्काल परिणामस्वरूप हुयी थी। ऐप्सो का जन्म एक ऐसे दौर में हुआ जो उपनिवेशवादी आधिपत्य के खिलाफ राष्ट्रीय आज़ादी के संघर्षों का गवाह है। दूसरे विश्व युध्द में फ़ासिज़्म की हार, इसमें सोवियत संघ द्वारा निभाई गयी बहादुराना भूमिका, समाजवादी खीमे का अभ्युदय और नाभिकीय हथियारों जिसके एक हमले ने हिरोशिमा और नागासाकी को तवाह कर दिया, के खिलाफ उभरता आंदोलन आदि ने सारी दुनियां में शांति आंदोलन को खड़ा कर दिया। शीत युध्द के चलते संसाधनों का विचलन करने वाली हथियारों की होड़ तथा साम्राज्यवादी आक्रमणों और नाभिकीय टकरावों के खतरों ने एक सक्रिय शान्ति एवं एकजुटता आंदोलन की जरूरत को पुनः रेखांकित किया।

स्थिति की गंभीरता को समझते हुये और एक ऐसे संगठन की आवश्यकता को महसूस करते हुये जो कि भारत के लोगों को विश्व शान्ति की रक्षा में खड़ा कर सके तथा राष्ट्रीय आजादी के आंदोलनों के सहयोग में एकजुटता को मजबूत बनाया जा सके, इसमें जीवन के हर क्षेत्र से जुड़े लोग– डा॰ सैफुद्दीन किचलू, एच॰ डी॰ मालवीय, रामेश्वरी नेहरू, अरुणा आसफ अली, श्री सुंदरियाल, डा॰ एम॰ एम॰ अटल, अजोय घोष, ए॰ के॰ गोपालन, प्रोफेसर डी॰ डी॰ कौशांबी, पृथ्वीराज कपूर, बलराज साहनी, जाने माने लेखक और विद्वान- कृष्ण चंदर, राजेन्द्र सिंह बेदी, वल्लथोल, एस॰ गुरुबख्श सिंह, वी॰ के॰ कृष्णा मेनन, के॰ मुल्कराज आनंद आदि महान लोग इसके साथ आये और 1951 में आल इंडिया पीस काउंसिल की स्थापना में योगदान किया जो कि बाद में 1972 में आल इंडिया पीस एंड सोलिडरिटी ऑर्गनाइज़ेशन के रूप में विकसित हुआ।

इन सत्तर सालों में ऐप्सो शान्ति, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय, मानवीय गरिमा, समानता, स्थायी पर्यावरण और समूचे विश्व की विकास संबंधी नीतियों से जुड़े तमाम मुद्दों और घटनाक्रमों की श्रृंखला के साथ लगातार और सकारात्मक रूप से जुटी रही है। वियतनामी मुक्ति संग्राम के सरोकारों की अगुवाई और अन्य देशों के दमनकारी उपनिवेशवादी शासनों से मुक्ति के सवालों पर ऐप्सो अगुवा भूमिका में रही है। यह बंगला देश की मुक्ति के संघर्ष के साथ, क्यूबा पर अमेरिकी आक्रमण के खिलाफ, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन की समाप्ति के लिये, सहारावी जनतंत्र की आजादी के लिये और फिलिस्तीनियों को मात्रभूमि दिलाने के संघर्ष के साथ सक्रिय एकजुटता संगठित करती रही है। ऐप्सो ने फिलिस्तीन की जनता और उनके स्वतंत्र राज्य के अटूट अधिकार के प्रति अपनी एकजुटता गतिविधियो को निरंतर जारी रखा है। यह सभी देशों खासकर हमारे पड़ौसी देशों के लोगों के बीच मैत्री बढ़ाने के लिये निरन्तर प्रयासरत है।

चुनौतियाँ-

इतिहास की यात्रा कभी भी सीधी रेखा में नहीं चलती और ये जिस रास्ते को चुनती है वह लगातार बदलता रहता है, ये अक्सर मौलिक रूप से भिन्न, विविध और नया वातावरण, नई वास्तविकताएं और नई चुनौतियौं से भरा रहता है। सोवियत संघ के विघटन के तत्काल बाद बने एकध्रुवीय विश्व के अब बहुध्रुवीयता की ओर प्रवृत्तियाँ रेखांकित करने योग्य हैं।

आर्थिक, सामाजिक, एवं राजनैतिक प्रक्रियाओं के अलावा विज्ञान और तकनीकी में विकास ने भी इन परिवर्तनों को लाने में उल्लेखनीय योगदान किया है। आजकल यह कहना कि हम एक ‘ग्लोबल विलेज’ में रहते हैं, अत्यंत फेशनेबल कथन हो गया है। यह आकर्षक वाक्यांश तभी स्वीकार्य होगा जब विश्व के संसाधनों पर मानवमात्र की न्यायसंगत पहुंच होगी, उनके पुनर्वितरण और सहयोग पर आधारित वैश्विक स्वतन्त्रता का वे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उपभोग कर सकेंगे। लेकिन वास्तविकता इससे कहीं अधिक जटिल और प्रायः क्रूर है। युध्द के बादल अभी और अधिक मंडरा रहे हैं, नाभिकीय हथियारों का निर्माण अनअपेक्षित रूप से हो रहा है, लाखों लोग कष्टों और अभाव का जीवन जी रहे हैं, जातिवाद, धार्मिक कट्टरवाद और सांप्रदायिकता मानव समाज पर अलग से हमलावर हैं।

राजकीय आतंकवाद सहित आतंकवाद इस दौर की एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरा है। सभी संसाधनों और बाजार पर कब्जा करने की भूख ने व्यापार युध्द, राजनैतिक और आर्थिक हस्तक्षेप, राष्ट्रीय संप्रभुता पर हमले और सैनिक हस्तक्षेपों को पैदा किया है। पहचान की राजनीति को विभाजित करने के लिए, घृणा के वातावरण को थोपने के लिये, वैश्विक प्रभुत्व के लिये वैश्विक ताकतों के आभिजात्य वर्ग के व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिये हिंसा और आपसी मारकाट को पनपाया जा रहा है। इस भीषण प्रक्रिया ने एक फ्रेंकेस्टीन खड़ा कर दिया है, जो अपने ही बच्चों का भक्षण कर रहा है। अनेक देशों में बहुसंख्यकवाद एक नया संकट है, जातिवाद बढ़ रहा है; बच्चे, महिला और समाज के अन्य असुरक्षित वर्गों की कोई सुरक्षा नहीं है; शरणार्थी संकट, बालश्रम, मानव तस्करी प्रतिदिन खबर बनती हैं। मुनाफ़ों और लालच की अत्रप्त प्यास संसाधनों की लूट की ओर ले जारही है परिणामस्वरूप, पर्यावरणीय सर्वनाश बे- रोक टोक जारी है।

सारतः नई विश्वव्यवस्था जन- विरोधी है, यह अपवर्जनात्मक है, भेदभावपूर्ण और प्रतिगामी है। यह चंद दंगाइयों द्वारा अपार भीड़ पर ताकत आजमाने को बनाई गयी है। लेकिन हम चुपचाप नहीं सह सकते अथवा मूकदर्शक नहीं बने रह सकते। क्यौंकि उनकी दुष्ट क्रियाएं न केवल हमें हानि पहुंचाती हैं अपितु आने वाली पीढ़ियों को खतरों में डालती हैं।

संकल्प-

अब समय आ गया है कि सभी शान्ति चाहने वाले लोग  इन प्रतिगामी ताकतों के समक्ष खड़े हों और उन्हें शिकस्त दें। हमारे लिये अब समय आगया है कि हम अपनी सामूहिक पहचान को पुनः हासिल करें—हम लोग, इस देश के हों अथवा इस ग्रह के, इस मनमानी बरवादी को जारी नहीं रहने देंगे। अपने देश की रक्षा के लिये, अपनी दुनियाँ, अपने ग्रह और अपने भविष्य की रक्षा के लिये हम साथ साथ आगे बढ़ेंगे। हम साथ मिल कर चिरस्थायी शान्ति, एकजुटता और खुशहाली से परिपूर्ण दुनियाँ बनायेंगे। यही हमारा प्रयास है………….. ऐप्सो का प्रयास।

AIPSO  का निर्माण और विस्तार समय की आवश्यकता-

प्रिय साथियों,
ऐसे समय में जब रूस और यूक्रेन युध्द जन धन की भीषण तबाही बरपा रहा है, चीन- ताइवान, उत्तर कोरिया- दक्षिण कोरिया, ईरान- इजरायल, सीरिया और भारत की सीमायें आदि दुनियां के विभिन्न भागों में भारी तनाव व्याप्त है, विश्व युध्द का खतरा हर तरह  और हर तरफ मंडरा रहा है और इसके महाविनाशक परमाणु युध्द में तब्दील होने का खतरा है– ऐसे में शान्ति के लिये विशेष प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
इसके लिये देश के स्तर पर अखिल भारतीय शान्ति एवं एकजुटता संगठन  AIPSO लगातार काम कर रहा है।
लेकिन काफी वर्षों से उत्तर प्रदेश में इसका संगठन निष्क्रिय पड़ा हुआ है। यह एक ऐसा संगठन है जिसमें तमाम प्रबुद्ध और शान्तिकामी लोगों को शामिल किया जा सकता है।
गत दिनों लखनऊ में जुटे शान्तिकामी लोगों ने इसके पुनर्गठन की आवश्यकता पर बल दिया और एक पहलकदमी समिति का गठन किया। सभी लोगों ने आग्रह किया कि प्रदेश में इसका ढांचा खड़ा होने तक मैं इसका दायित्व संभालूं। यद्यपि मेरे ऊपर तमाम दायित्व हैं, लेकिन राज्य सम्मेलन आयोजित करने तक यह दायित्व मैंने स्वीकार कर लिया है।
लेकिन जिलों के साथियों ने इस काम में तत्परता नहीं दिखायी और अभी तक नोएडा, गाज़ियाबाद एवं इलाहाबाद में ही कमेटियों ने काम करना शुरू किया है।
यदि 50-  60 जिलों में कमेटियां गठित हो जायें और  डेलीगेट चुन लिये जायें तो फिर राज्य सम्मेलन कराया जा सकता है। राज्य सम्मेलन मथुरा में तय है।
अतएव आप अपने जनपद में इसकी कम से कम 50 की सदस्यता करायें और 11 अथवा 15  और आवश्यकतानुसार इससे भी  अधिक सदस्यों को शामिल कर इसकी कमेटी बनायें।
सदस्यता रुपये 50 प्रति सदस्य है जिसमें से 30 राज्य केन्द्र को आने हैं और 20 आपके पास रहने हैं। राज्य केन्द्र का भाग सम्मेलन के समय भी जमा किया जा सकता है।
कमेटी में एक संरक्षकमण्डल, अध्यक्षमण्डल, एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष गण, एक महासचिव , सचिवमण्डल एवं कार्यकारिणी सदस्य चुने जा सकते हैं। क्षमता और आवश्यकतानुसार राज्य के लिये 2, 3, 4 प्रतिनिधि चुने जा सकते हैं।
यह सम्मेलन हर हाल में अक्टूबर के अंत तक आयोजित किया जाना है। अतएव शीघ्रता करें।  कमेटी बनायें और विवरण मेरे पास भेजें। अपनी गतिविधियां सोशल मीडिया पर भी अवश्य डालें।
अक्टूबर के अंत में मथुरा आगमन की तैयारी में जुट जायें।
आभारी हूंगा।

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