देश व उत्तर प्रदेश में घटा है प्रत्यक्ष विदेशी निवेश,क्या जिम्मेदार है राजनैतिक परिवेश?
डा. गिरीश
दुनियाँ की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के दावों और चुनावी कोलाहल के बीच यह चोंकाने वाली खबर दब कर रह गयी कि देश में विदेशी निवेश 3. 5 प्रतिशत घट कर 44. 42 अरब डालर रह गया। यह आँकड़ा दुनियाँ की तीसरी और 5 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के सत्ता प्रतिष्ठान के दावों को मुंह चिड़ा रहा है। यहाँ उल्लेखनीय यह भी है कि यह निवेश उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और कर्नाटक में घटा है।
सेवाओं, दूरसंचार, कंप्यूटर, हार्डवेयर- साफ्टवेयर, आटो और फार्मा जैसे क्षेत्रों में कम निवेश के कारण वित्त वर्ष 2023- 24 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ( एफडीआई ) 3. 49 प्रतिशत घट कर 44. 42 अरब डालर रह गया है। 2022- 23 में यह 46. 03 अरब डालर रहा था।
हालांकि इसी जनबरी और मार्च के दौरान एफडीआई 33. 4 प्रतिशत बढ़ कर 12. 38 अरब डालर रहा है जो एक साल पहले इसी अवधि में 9. 28 अरब डालर रहा था।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यदि इसमें इक्विटी को मिला दें तो कुल एफडीआई एक प्रतिशत गिर कर 70. 95 अरब डालर रहा है। एक साल पहले यह 71. 35 अरब डालर रहा था।
वित्त वर्ष 2021- 22 में देश में कुल 84. 83 अरब डालर का एफडीआई आया था। पिछले वित्त वर्ष में जिन देशों से एफडीआई की आमद में गिरावट आयी थी उनमें मारीशस, सिंगापूर, अमेरिका, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, केमन आइसलेंड, जर्मनी और साइप्रस रहे हैं। उल्लेखनीय है कि नीदरलेंड और जापान से निवेश बड़ा है।
जिस उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक निवेश मेले आयोजित किए गये और उस पर पब्लिक रिवेन्यू का बड़े पैमाने पर धन खर्च कर दिया गया, वहाँ निवेश घटा है। इसके साथ ही दिल्ली राजस्थान और हरियाणा में भी निवेश घटा है। कर्नाटक में तो ये निवेश 10. 42 अरब डालर से घट कर 6. 57 अरब डालर रह गया।
आंकड़ों के अनुसार 15. 1 अरब डालर के निवेश के साथ महाराष्ट्र शीर्ष पर रहा है। गुजरात में निवेश बढ़ कर 7. 3 अरब डालर रहा। तमिलनाड्डु, तेलंगाना और झारखंड में भी निवेश में वृद्धि रही है।
एफडीआई में देश के पैमाने पर आयी गिरावट और उसमें उत्तर प्रदेश जैसे राज्य का शामिल होना कई सवाल छोड़ता है। प्रमुख सवाल यह है कि विभाजनकारी एजेंडे पर चल रही डबल इंजन सरकार पर से निवेशकों का विश्वास घटा है।