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इस बार यह मात्र चुनाव नहीं हैं ! युवा वोटर दिशा तय करेगा

के. विक्रम राव

अठारहवीं लोकसभा के मतदान में अठारह वर्ष के करीब दो करोड़ नवपंजीकृत वोटर होंगे। बड़ा दारोमदार इस समूह पर होगा, अगली भारत सरकार के गठन में। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे “मेरा पहला वोट मेरे देश के लिए” की अहमियत तथा दायित्व और प्रासंगिकता बढ़ जाती है। गत माह में अपनी 110वीं कड़ी (“मन की बात”) के प्रसारण में मोदी ने यही आग्रह किया था। प्रथम आम चुनाव 1952 में 17.32 करोड़ मतदाता थे। आज अमृतकाल वाले साल में साढे चौरानवे करोड़ लोग वोट डालेंगे। गत प्रथम जनवरी तक हुई पंजीकृत मतदाताओं की यही संख्या है। कुल मायने यही हैं कि अगला चुनाव भारतीय लोकतंत्र की तारीख में अद्भुत होगा। सर्वाधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण भी।


ये लोग ही भारत को दुनिया में वोट डालने वाले सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में से एक बनाते हैं। यह संख्या 2019 के चुनावों से पहले रजिस्टर्ड 89.6 करोड़ लोगों से 8.1 प्रतिशत अधिक है। इस बार कुल मतदाताओं में 49.7 करोड़ पुरुष मतदाता (2019 से 6.9 प्रतिशत अधिक) और 47.1 करोड़ महिलाएं (9.3 प्रतिशत अधिक) शामिल हैं। यह देश की आबादी का 66.8 प्रतिशत है। इस बार 21.6 करोड़ 18-29 वर्ष की आयु के मतदाता है। इनकी संख्या कुल मतदाताओं के 22 प्रतिशत से अधिक हैं।
प्रधानमंत्री की अपील का वोटरों पर कितना असर पड़ता है यह भी प्रतीक्षित रहेगा, मगर इतना तय है कि होनेवाला मतदान युगांतकारी और युगांतरकारी होगा। दो खास महागठबंधनों की क्रियाशीलता के फलस्वरुप परिणाम प्रभावोत्पादी होंगे। लोकमत को मजबूती देंगे। दुनिया भी जान लेगी कि भारत अब संपेरो और रस्साकशी करनेवाले नटों का मुल्क नहीं रहा, जो अंग्रेज साम्राज्यवादियों ने बनाकर 1947 में छोड़ा था। मत परिणाम इस बार वोटरों की आत्मचेतना की आवाज की प्रतिध्वनि होगी। कवि जॉन मिल्टन की ऐसी ही शब्दावली थी। जनवाणी मतपत्रों द्वारा ईवीएम से व्यक्त होगी।
मोदी के “मेरा वोट मेरे देश के लिए” की तर्ज पर ही गुजरात में 1968 में श्रीमती मदालसा बजाज नारायण का ऐसा ही अभियान याद आता है। उसकी मैंने विस्तार से रिपोर्टिंग की थी। क्या संयोग है कि गुजराती नरेंद्र मोदी का नारा कितना मेल खाता है गुजरात के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. श्रीमन नारायण की इस धर्मपत्नी के प्रयासों से ? वे प्रसिद्ध गांधीवादी उद्योगपति जमनालाल बजाज की दूसरी पुत्री थीं। उनके पति श्रीमन नारायण प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, सांसद और शिक्षा विद रहे।
बात है जुलाई 1968 की। तभी “टाइम्स आफ इंडिया” के नए अहमदाबाद संस्करण में मेरा बंबई कार्यालय से तबादला हुआ था। संपादक ने मुझे बुलवाया और श्रीमती मदालसा नारायण का अनुरोध पत्र दिखाया। उन्होंने उल्लेख किया कि अगस्त 1968 में आजाद भारत के प्रथम युवजन वोटर बनेंगे। तब आयु 21 वर्ष होती थी। भारत को आजाद हुए भी 21 वर्ष हुए थे।
संपादक ने मुझे यह सर्वेक्षण कार्य को खबर बनाने का निर्देश दिया। मैं तब सूरत और बड़ौदा नगरों के नवयुवाओं से भी मिला। सवाल करता था कि शासन में नया अधिकार पाने से वे कैसा अनुभव कर रहे हैं ? सरकार से कैसी भूमिका की आशा है ? नए वोटरों की अपेक्षाएं क्या हैं ? एक लंबी रपट कई हिस्सों में लिखकर मैंने तैयार की थी। संपादक ने इसे कई भागों में छापी। काफी प्रशंसनीय हुई थी। फिलहाल मुझे भी आत्मसंतोष हुआ कि एक रिपोर्टर के नाते लोकतंत्र में मेरा भी प्रचार-प्रसार का रोल रहा। पहला नागरिक कर्तव्य मैंने सम्यक तरीके से निभाया। दूसरा था जून 1975 में जब इंदिरा गांधी ने संविधान खत्म कर तानाशाही की थी। मुझे पांच जेलों में 13 माह कैद रखा।
गत माह चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने महिला मतदाताओं, 18-19 वर्ष की आयु के मतदाताओं में उल्लेखनीय वृद्धि का श्रेय मुख्य आयुक्त राजीव कुमार द्वारा मतदाता सूची की शुद्धता और सुधार के लिए किए गए प्रयासों को दिया गया। शैक्षणिक संस्थानों के साथ काम करने और योग्य युवा मतदाताओं को नामांकन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए विशेष सहायक निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों को नियुक्त भी किया गया था। महिलाओं के कम पंजीकरण और मतदान वाले निर्वाचन क्षेत्रों की पहचान की गई। साथ ही इसे ठीक करने के लिए गहन प्रयास किए गए। विशेष प्रयासों से विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के 100% नामांकन में मदद मिली। कड़ी जांच और घर-घर जांच के साथ नामावलियों को साफ करने के प्रयासों से 1.65 करोड़ मृत, स्थायी रूप से स्थानांतरित और डुप्लिकेट मतदाताओं का नाम हटा दिया गया है।
गमनीय पहलू है कि भारत की लगभग 70% आबादी की उम्र 65 साल से कम है। वहीं इनमें 15 से 20 के आयु वर्ग में लगभग 25 करोड़ आबादी के साथ भारत इस समय विश्व का सबसे युवा देश बन चुका है। ऐसे में आज जब देश के चुनावों में युवा मतदाताओं की भागीदारी बढ़ रही है, तो इससे न केवल भारत के स्वर्णिम भविष्य के प्रति आशावान हुआ जा सकता है, अपितु भारतीय लोकतंत्र के लिए भी इसे एक शुभ संकेत के रूप में देखा जा सकता है। शानदार भारत को हार्दिक बधाई।

 

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