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पित्सा, पराठा और हम ! विश्व खाद्य दिवस पर !!

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के. विक्रम राव

कल (9 फरवरी 2024) विश्व पित्सा दिवस था। पित्सा अथवा पिज़्ज़ा यूरोपियन आत्मबंधु है पराठे का। इटली में जन्मा यह पराठा कर्नाटक के सागरतट पर अवतरित हुआ था। भले ही दोनों में दूरी हजारों मीलों की हो, पर साम्य बहुत है। इतिहास भी सदियों पुराना। एक समानता है दोनों में। भारत में बनने वाले पित्सा में उपयोग होने वाला पनीर भैंस के दूध का होता है। जन्मस्थान इटली में भी इसी भारतीय पनीर का आयात होता है।
कैसे शुरुआत हुई पित्सा की ? इसका दिवस कैसे मनाना प्रारंभ हुआ ? लोग कह सकते हैं कि राष्ट्रीय पिज़्ज़ा दिवस की शुरुआत 10वीं शताब्दी में नेपल्स, इटली, में हुई थी।
आधुनिक पिज़्ज़ा की शुरुआत एक साधारण फ्लैटब्रेड (सपाट रोटी) के रूप में हुई जिसे चटनी (सॉस) के साथ फैलाया गया और पनीर के साथ छिड़का गया। पिज्जा ने 1980 के दशक के आसपास भारतीय खाद्य बाजार में प्रवेश किया था, लेकिन 1996 तक ऐसा नहीं हुआ कि कुछ अमेरिकी फास्ट फूड श्रृंखलाओं ने अपने पैन-पिज्जा के साथ दुकान स्थापित की। उस समय तक, अधिकांश भारतीयों के लिए पिज़्ज़ा एक ब्रेड बेस था जिसके ऊपर टमाटर केचप और प्रसंस्कृत पनीर डाला जाता था।
पिज़्ज़ा हजारों साल पुराना है, इसकी जड़ें टॉपिंग वाले फ्लैटब्रेड से मिलती हैं जो प्राचीन मिस्र, यूनानियों और रोमनों के बीच लोकप्रिय थे। लेकिन आधुनिक पिज्जा, टमाटर सॉस, पनीर और टॉपिंग के साथ फ्लैटब्रेड, इटली के पश्चिमी तट पर नेपल्स शहर में पैदा हुआ था। पिज़्ज़ा का आविष्कार पहली बार नेपल्स, में कामकाजी वर्ग के नीपोलिटन लोगों के लिए तेज़, किफायती, स्वादिष्ट भोजन के रूप में किया गया था। हालाँकि हम सभी आज के इन स्लाइसों को जानते हैं और पसंद भी करते हैं, पिज़्ज़ा वास्तव में 1940 के दशक तक बड़े पैमाने पर लोकप्रिय नहीं हुआ था, जब आप्रवासी इटालियंस अपने क्लासिक स्लाइस को संयुक्त राज्य अमेरिका में लाए थे।
पिज़्ज़ा ने पहली बार 1996 में डोमिनोज़ पिज़्ज़ा के साथ भारतीय बाज़ारों में प्रवेश किया और कई अन्य पिज़्ज़ा विक्रय केन्द्रों ने इसका अनुसरण किया। भारत में प्रमुख पिज़्ज़ा आउटलेट डोमिनोज़, पिज़्ज़ा हट और पापा जॉन पिज़्ज़ा हैं। फास्ट-फूड उद्योग में बढ़ती मांग के कारण भारतीय बाज़ारों में डोमिनोज़ पिज़्ज़ा को सफलता मिली। पित्सा दुनिया भर में अधिकांश लोगों के बीच लोकप्रिय है। हर साल हम 9 फरवरी को विश्व दिवस मनाकर इस व्यंजन का जश्न मनाते हैं। यह कभी-कभी हमारी पार्टियों और देर रात की फिल्म योजनाओं का एकमात्र निरंतर सदस्य होता है। हमने पिज़्ज़ा बनाने की अपनी तकनीक भारत में विकसित कर ली है। बटर, चिकन, पनीर और भारतीय स्वाद से मेल खाने वाले अन्य व्यंजनों की हमारी उत्कृष्ट पसंद के कारण, पिज्जा ने हमारे देश में एक लंबा सफर तय किया है।
पित्सा से जुड़ा एक निजी वाकया मेरे परिवार के साथ हुआ था। इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) के एक मीडिया अधिवेशन में सपरिवार हम राजधानी रोम गए थे। वहां रेलवे स्टेशन के सामने एक लजीज खोंचेवाला पित्सा बना रहा था। पुत्री विनीता, दोनों पुत्र सुदेव और विश्वदेव मेरे साथ शाकाहारी पनीर पित्सा खा रहे थे। पत्नी डॉ. सुधा राव पड़ोस के फुटपाथ पर कुछ खरीदारी में लगी थीं। जब तक वह खाने आयीं तो उसे तैयार पित्सा मिला। मेरी बेटी ने मां को रोका और खोंचेवाले से पूछा कि उसके पहले तवे पर कौन सा पित्सा पकाया गया ? वह बोला : बीफ (गोमांस) का। सुधा तुरंत बिना खाये हट गईं। उसका विप्र-कुल बच गया। खोंचेवाला बोला : “हम एक ही तवा सबके लिए इस्तेमाल करते हैं।” हम धर्मभ्रष्ट होने से बच गए। ईश्वर की अनुकंपा थी।
अब तनिक उल्लेख हो पराठे का। आज भले ही अमृतसर, दिल्ली आदि में पराठे वाली खूब छलांगे लगाती हो। पर इस स्वादिष्ट खाद्य का अवतरण कन्नड़भाषी प्रांत में हुआ था। भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी यह फ्लैटब्रेड है। इसका प्रारंभिक संदर्भ कर्नाटक के प्रारंभिक मध्ययुगीन संस्कृत पाठ में वर्णित है। यह भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य पूर्व में सबसे लोकप्रिय है। पराठा परात और आटा शब्दों का मिश्रण यह पराठा है, इसका शाब्दिक अर्थ है पके हुए आटे की परतें। वैकल्पिक वर्तनी और नामों में शामिल हैं परांथा, परौंथा, प्रोंथा, परोंते, परोंथी (पंजाबी), पोरोटा (बंगाली में), पराठा (उड़िया, उर्दू, हिंदी में) तथा पलटा।
पराठा शब्द संस्कृत से लिया गया है। विभिन्न भरवां, गेहूं, पूरन तथा पोलिस आदि परांठे के रूप में वर्णित किये जाते हैं। इस व्यंजन का उल्लेख मानसोलासा में किया गया है, जो 12वीं शताब्दी का एक संस्कृत विश्वकोश है, जिसे पश्चिमी चालुक्य राजा सोमेश्वर तृतीय द्वारा संकलित किया गया था। इन्होंने वर्तमान कर्नाटक में शासन किया था। पराठे का उल्लेख लेखक निज्जर (1968) ने अपनी पुस्तक “पंजाब अंडर द सुल्तान्स” 1000-1526 ईस्वी में भी किया है, वे लिखते हैं कि परांठे पंजाब में कुलीन और अभिजात वर्ग के बीच प्रिय थे।
अब इस पराठे से जुड़ी हमारी एक निजी दास्तां पर भी गौर कर लें। इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के पचास पत्रकारों के शिष्ठ मंडल को लेकर हम कम्युनिस्ट चीन गए थे। वहां के होटल में खाना इतना खराब था कि हमारे कट्टर मांसाहारी भी शाकाहारी बन गए। वराह और गोमाता के कारण। खासकर मुस्लिम साथी तो खास धार्मिक कारणों से। कहीं झटकेवाला हुआ तो ? पर गुस्सा मुझे आया जब हम साधारण शाकाहारियों को रोटी तक पकी हुई मयस्सर नहीं हुई। मैं लहसुन, प्याज भी न खाने वाला कट्टर वनस्पतिहारी बड़ा क्रोधित हुआ, जब अचानक एक सुबह हमारे होटल के डाइनिंग रूम में दूसरी टेबल पर कुछ एशियाई लोग खाना खा रहे थे। मैंने पूछा : “वे क्या खा रहे हैं” ? रसोइये ने कहा : “वे सब पाकिस्तान से आए हैं और पाकिस्तानी पराठा खा रहे हैं।”
मैंने तुरंत आदेश दिया : “हम सबको वही दो।” वह अचंभित था। मैं बोला : “आज हम भी पाकिस्तानी हो गए।” दोस्ताना तो चीन-पाकिस्तान का ज्यादा गाढ़ा है। अर्थात हथियारों से पराठे तक याराना। फिर मैंने रसोइये को बताया कि पराठा भारतीय खाना है पाकिस्तान के पैदा होने के पहले से।

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