टनल से मजदूरों के सुरक्षित निकाला जाना,”मानव द्वारा मानवता की रक्षा करने की अनूठी दास्तान है यह आपरेशन”: डॉ. गिरीश
17 दिन के तनावपूर्ण हालातों के बाद उत्तरकाशी की टनल से पहली राहतकारी खबर अभी शाम 7 बज कर 48 मिनट पर आई जब पाँच मजदूरों के टनल से बाहर आने के उद्घोष से लगभग सारे टीवी चैनल्स गूंज उठे। यह और भी अधिक प्रशन्नता और आश्चर्य का मौजू रहा कि मात्र 40 मिनट के अंतराल में सभी 41 मजदूर सुरक्षित बाहर आगये। “मानवता की रक्षा के लिये मानव के संघर्ष की यह अनूठी दास्तान इतिहास के पन्नों में सदैव स्वर्णाक्षरों में दर्ज रहेगी।”
41 मजदूरों के परिवारों के लिये ये बेहद खुशी के लमहे हैं। उनका खुशी से झूम उठना स्वाभाविक है। देश का एक एक नागरिक झूम उठा है। अनेकों की आँखें नम हैं। आखिर देश की दौलत का निर्माण करने वाले 41 शूरमा 17 दिनों तक जीवन- मृत्यु के बीच संघर्ष जीत कर अपने पुराने संसार में नये जीवन की शुरूआत करने वाले हैं।
झांसी से आये श्री मुन्ना के नेत्रत्व में 11 रैड माइनर्स की टीम के साथ बचाव टीम- एनडीआरएफ़, एसडीआरएफ़, सेना, तकनीशियन्स और सिविलियन्स का एक एक साथी इस महान उपलबद्धि के लिये बधाई का पात्र है। सच तो यह है कि देश उनका ऋणी है। अवाम का विश्वास जागा है कि हमारे बहादुर जाबांज बड़े से बड़े संकट का मुक़ाबला करने में सक्षम हैं। मजदूर मजदूर भाई भाई का नारा आज चरितार्थ हुआ है।
लगभग 400 घंटों का यह पेचीदा आपरेशन विज्ञान और मानव मस्तिष्क की अपार क्षमताओं को निर्विवाद रूप से स्थापित करता है। यद्यपि इस पूरे प्रकरण में धर्म की कोई भूमिका नहीं थी। लेकिन जैसा कि महान दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने कहा है “धर्म उत्पीड़ित प्राणी की आह, हृदयहीन संसार का हृदय और आत्मा की स्थिति है। यह जनता की अफीम है।“ हूबहू यही भूमिका उसकी इस प्रकरण में भी रही। बचाव की भौतिक प्रक्रिया से कोसों दूर होते हुये भी वह विह्वल लोगों का सहारा बना रहा।
हिमालय में राजनैतिक लाभ और धार्मिक भावनाओं को उकेरने की गरज से किए गए इस विकास पर आगे निश्चित ही चर्चा होगी। पर आज समय खुशियाँ मनाने का है, इस चर्चा का नहीं।
आपरेशन के सफल होने तक राजनीति न होती तो अच्छा होता। उत्तराखंड सरकार हो या केन्द्र सरकार को जो दायित्व निभाना चाहिए था वो निभा रहीं थीं। यह उनका दायित्व है। रणनीतिक सफलताओं और असफलताओं की भी चर्चा होगी ही। परन्तु मीडिया में बार बार फ्लैश कराया गया कि ‘अमुक श्रीमान बेहद फिक्रमंद हैं। जब में इन पंक्तियों को टंकित कर रहा हूं तब भी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री उस अदृश्य शक्ति की तारीफ के पुल बांधने में जुटे हैं।
जबकि हम सभी जानते हैं कि इस दरम्यान वह वोट मांगने, मैच देखने, नाच देखने, हवाई सैर करने और न जाने क्या क्या गतिविधियों में संलिप्त थे। एक गिरोह मौका चूकने को तैयार नहीं था और उसने कई कई बार जय श्रीराम तथा मोदी है तो मुमकिन है जैसे नारे लगाए। यह निंदनीय है। पर इस गिरोह के लिये स्वलाभ के लिये कुछ भी मुमकिन है।
विपक्ष संयत बना रहा, यह उल्लेखनीय है।
अब यह जरूरी है कि स्वास्थ्य लाभ के बाद मजदूरों और उनके परिवारियों को उनके घरों तक सुविधापूर्वक पहुंचाने की व्यवस्था की जाये। 41 मजदूरों को “जीवित शहीद” माना जाये और सेना के शहीदों की भांति उन्हें सारी सुविधाएं और राहतें मुहैया कराई जायेँ। नियोक्ता कम्पनी से नियमानुसार पावनाएं दिलाई जायें। और सबसे बड़ी बात है कि टनल निर्माण और उससे जुड़े हादसे की ज़िम्मेदारी तय कर जनता के सामने लाया जाये।