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मार्क्सवादी समर्थक नूपुर शर्मा के पक्षधर !

                    के. विक्रम राव
              नूपुर शर्मा की पैगंबर पर की गयी टीवी टिप्पणी से उपजे विवाद पर मशहूर वामपंथी विधिवेत्ता इंदिरा जयसिंह और सहअधिवक्ता आशीष गोयल ने आज के दैनिक इंडियन एक्सप्रेस (16 जुलाई 2022, पृष्ठ : 9, कालम 7—8) में एक अत्यंत विचारोतजक लेख लिखा है। इन दोनों फाजिल (विद्वान) वकीलों ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय की खण्डपीठ द्वारा नूपुर की याचिका खारिज करनेवाला निर्णय त्रुटिपूर्ण है। इसमें विभिन्न प्राथमिकियों को एक ही स्थान में सुनवाई हेतु आदेश न पारित ​कर खण्डपीठ ने मान्य न्यायिक दृष्टांत और नजीरों को नकारा है। फौजदारी न्यायप्रक्रिया की स्तरीय तथा विवेकशील प्रणाली को खारिज कर दिया है। नौ प्राथमिकी​ भिन्न राज्यों में दर्ज की गयी हैं। एक ही स्थल पर सबको नत्थी और मिसिल करने की आम अपेक्षा थी। खासकर ऐसे माहौल में जब नूपुर पर रेप और हत्या का खतरा मंडरा रहा हो।

इन विद्वान विधिवेत्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय के दो पूर्व निर्णयों का उदाहरण भी दिया। सन 2001 का ”टीटी एन्टनी बनाम केरल राज्य” तथा ”बाबूभाई बनाम गुजरात राज्य” वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का। पत्रकार अर्णव गोस्वामी तथा अमित देवगण की याचिकाओं का संदर्भ भी है। सुनवाई के स्थलों की बहुलता से नूपुर शर्मा के मूलाधिकार (धारा 21) का भी हनन होता है। अपराध सिद्ध होने तक दण्ड देना निषिद्ध हैं। फौजदारी न्याय प्रक्रिया में यह सर्वविदित तथा अपेक्षित कदम है।
लेखिका इंदिरा जयसिंह निश्चित तौर पर प्रगतिशील तथा मानवाधिकार रक्षा की बहुचर्चित जनवादी अधिवक्ता हैं। वे हाल ही में तीस्ता सीतलवाड की भी वकील रही। पत्रिका ”फार्चून” ने उन्हें विश्व के पचास विधिवेत्ताओं की श्रेणी में रखा है। मुम्बई की हिन्दू सिंधी परिवार की इंदिरा जयसिंह नारीरक्षिका तथा वामपंथी मुद्दों की प्रबल पक्षधर मानी जाती हैं। इन्हीं विशिष्टताओं के कारण वे सोनिया गांधी की प्रशंसा की पात्र बनी थीं। मनमोहन सिंह सरकार ने इंदिरा जयसिंह को भारत की प्रथम (2009) महिला अतिरिक्त सालिसिटर जनरल नामित किया था।
इसी भांति दूसरे लेखक आशीष गोयल भी जानेमाने मानवाधिकारी रक्षक तथा अधिवक्ता हैं। दुबई में उन्हें विश्व के सौ प्रखर विधि विशेषज्ञ में एक करार दिया गया था। कठोर यूएपीए कानून के वे प्रबल विरोधी है। इन दोनों ने अपनी लेखनी द्वारा नूपुर शर्मा के न्यायपूर्ण पक्ष को बेहतरीन तौर पर पेश किया है। खण्डपीठ के वरिष्ठ जज जमशेद पारडीवाला गुजरात हाईकोर्ट में न्यायाधीश रहे। गांधीनगर में ही वे अधिवक्ता रहे। दक्षिण गुजरात के नगर वलवाड में उन्होंने विधि की शिक्षा पायी।
खण्डपीठ के दूसरे जज है न्यायमूर्ति सूर्यकांत। वे हरियाणा राज्य सरकार के सबसे युवा महाधिवक्ता (7 जुलाई 2000) थे। तब हरियाणा के मुख्यमंत्री थे चौधरी ओम प्रकाश चौटाला। संभावना है सर्वोच्च न्यायालय के 52वें प्रधान न्यायमूर्ति बन सकते हैं।
कई विधि निष्णातों ने इंगित किया कि नूपुर शर्मा ने अपनी याचिका में केवल यह प्रार्थना की थी कि उसके वि​रुद्ध दायर किये गये भिन्न प्राथमिकी रपटों को नत्थी कर एक ही स्थान पर सुनवाई हेतु कर दिया जाये। नूपुर ने इन एफआईआर को निरस्त करने की मांग कभी भी नहीं की थी। क्योंकि कानून का राज यही निर्दिष्ट करता है।
इसी अतिमहत्वपूर्ण तर्क पर विश्वहिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्री आलोक कुमार जो स्वयं विधिवेत्ता हैं, ने कहा कि : ”जब एमएफ हुसैन पर दर्ज मामलों को एक जगह सुना जा सकता था तो फिर नूपुर शर्मा के मामले क्यों नहीं हो सकते हैं?” वीएचपी पदाधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर कहा कि : ”नूपुर दोषी हैं या नहीं, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह मुददा था ही नहीं। एफआईआर के कंटेंट और नूपुर के दोषी होने अथवा नहीं होने की सुनवाई का अधिकार मजिस्ट्रेट को ही है और उन्हें भी पूरी प्रक्रिया का पालन करना होता है। मजिस्ट्रेट कोर्ट में गवाही दर्ज की जाती है, सुनवाई होती और उसी आधार पर यह तय होगा कि नूपुर दोषी हैं या नहीं।”
भारतीय समाज के कई अति गणमान्य नागरिकों ने भी सर्वोच्च न्यायालय की खण्डपीठ द्वारा नूपुर शर्मा की याचिका को खारिज करने के आदेश की आलोचना की है। इसमें विभिन्न हाईकोर्टों के 13 रिटायर्ड जज, 77 रिटायर्ड शासकीय उच्चाधिकारी कई अवकाशप्राप्त फौजी कमांडर शामिल हैं।

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