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आसफुद्दौला की बेमिसाल कृति शीश महल

लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतें सिरीज : पांचवी किस्त

के. सरन

नवाबी जमाने में और उसके पहले के बादशाहों को शीशमहल बनवाने का बड़ा शौक था।शीशमहल जैसा कि नाम से स्पष्ट है एक ऐसा महल जिसमें शीशा ही शीशा लगा हो ।
राजस्थान के जयपुर और उदयपुर में बने शीशमहल अपनी बेमिसाल कलाकारी के लिए दुनियां भर में जाने जाते हैं। अकबर बादशाह का दरबार भी शीशमहल था। भारतीय फिल्म -जगत में मील का पत्थर मानी जाने वाली फिल्म “#मुगले_आजम” में भी अकबर के दरबार का दृश्य शीशमहल के रूप में दिखाया गया था ।यह फिल्म अकबर के इतिहास पर शोध करके बनाई गई थी। प्यार किया तो डरना क्या ? गाने के दौरान दिखाए गए दृश्यों में मधुबाला(अनारकली) जब इस शीशमहल के दरबार में डांस करती है तो “चारों तरफ है उनका नज़ारा..वाली लाइन गाते समय शीशे की दिवारों और ऊपर छत में लगे शीशों में भी नृत्य करती मधुबाला की छवि दिखाई दे रही थी।
शीशमहल का आकार प्रकार इसी तरह का होता था।
अवध के नवाब आसफुद्दौला भी बादशाहों द्वारा बनवाए गए शीशे के महलों के इतिहास से वाकिफ थे।जाहिर है उनके मन में भी तमन्ना रही होगी शीशे का एक महल बनवाने की। सो उन्होने भी अपने दौलत खाने के पास,हुसैनाबाद इलाके में ही जहां वजीरों के रहने के लिए कोठियां बनवाई थीं वहीं आबादी के बीच एक शानदार ख़ूबसूरत तालाब बनवाया और उस तालाब के पश्चिम की ओर म्यूजियम के रूप में इस्तेमाल करने के लिए, शीशे का एक महल बनवाया जो उस जमाने में अपनी सुन्दरता के लिए दूर दूर तक मशहूर था। इस महल में छोटे -छोटे टुकड़ो के रूप शीशे कटवा कर,बड़े सलीके से
कटावदार आकार में जड़े गए थे।इसमें आदमी के कद के बराबर की ऊंचाई के शीशे भी काफी संख्या में आइनों की शक्ल में लगे थे।इन आदमकद शीशों के फ्रेम सोने से मढ़े थे और बीच- बीच में बेशकीमती पत्थर जड़े थे।
इस शीशे के महल वाले म्यूजियम में देश-विदेश से मंगाई गईं कीमती सौगातें तो थी ही चीनी जापानी कलाकृतियां और तस्वीरें बहुत करीने से सजाकर रक्खी थीं। इसमें चांदी का भी भारी मात्रा में प्रयोग हुआ था।
शीशमहल के पास बने तालाब के दूसरी तरफ संगमरमर का एक खुला आरामगाह बना था।इस आरामगाह में देश के दूसरे सूबों से बुलाई गई नर्तकियों और कलाकारों की महफिल जमती थी। गर्मियों मे शाही महल के लोग इस आरामगाह में आराम फरमाने आते थे। गर्मियों में तालाब के उस पार चलने वाली गर्म हवा तालाब के ऊपर से गुजर कर ठंण्ढी होकर, इस आरामगाह तक आती थीं और पूरे आरामगाह में गर्मी और तपिश का नामो निशान नहीं रहता था।यहीं तालाब के एक किनारे शाही हमाम खाना(स्नानघर)बना था । इस हमाम खाने के कमरों में गर्म और ठ॔ण्ढ़े पानी के फव्वारे लगे हुए थे।इन कमरों के पीछे पोशाक गाह बनी थी जो चौकोर हाल की शक्ल की थी जिसमें हर तरह के इत्र केवड़ा सहित सिंगार का पूरा सामान रहता था और बेगमों की सेवा के लिए बांदियां भी मौजूद रहती थीं।बेगमों के कपड़े गुलाबजल से धोकर फैलाए जाते थे।
इस पूरे इलाके में शीशमहल के चारों तरफ रौनक और सजावट के कारण बहुत खुशनुमा वातावरण हुआ करता था।इसे और ज्यादा रौनकदार और सजावट से भरपूर करने के लिए नवाब आसफुद्दौला ने विदेशों से मंगवाया था पर इस सामान के पहुंचने के पहले ही सन् 1497 में मर जाने के कारण उनके सामने यह सामान लग नहीं पाया। उसके बाद आसफुद्दौला के उत्तराधिकारी बने नवाब सआदत अली खां ने भी इसके रखरखाव में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ली और सआदत अली खां के न रहने पर उनके वारिस बने नवाब गाजिउद्दीन हैदर ने जब शाहनजफ का इमाम बाड़ा बनवाया तो शीशमहल में लगा बेशकीमती सजावटी सामान निकलवा कर शाहनजफ के इमाम बाड़े में लगवा दिया। 1857 की गदर के बाद लखनऊ पर अंग्रेजों ने कब्जा किया तो यहां की सुन्दरता को बर्बाद करने के उद्देश्य से नवाबों द्वारा समय- समय पर बनवाई गई बेशकीमती इमारतों में तोड़ फोड़ करके, उनका स्वरूप मिटाने के साथ, इमारतों में लगा सोना और चांदी लूट लिया। इस शीशमहल से 1857 में अंग्रेजों ने 44 मन यानी 44×40=1760 सेर(तब किलोग्राम और कुन्तल नही होता था अन्यथा यह चांदी वजन में लगभग 17 कुन्टल मानी जाती)

अब तो शीशमहल खत्म हो चुका है पर यहां बना तालाब आज भी है । हुसैनाबाद का यह पूरा इलाका जहां कभी शीशमहल हुआ करता था अब भी शीशमहल कहलाता है।
सर्वाधिकार सुरक्षित

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