आज भी लखनऊ की शानदार ऐतिहासिक इमारत मानी जाती है ‘आसिफ़ी मस्जिद’
लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतें सिरीज
के.सरन
लखनऊ के हुसैनाबाद इलाके में नवाब आसफुद्दौला ने सन् 1784 में जब लखनऊ में भयंकर अकाल पड़ा और काम न मिलने से बेरोजगारी के कारण लोग भूख से मरने लगे तो दयालू नवाब ने लोगों को रोजगार देने के उद्देश्य से एक दीर्घकालीन निर्माण योजना शुरू की जो लगभग 10 वर्षों तक चली।इसी योजना के अन्तर्गत रूमी दरवाजा,आसिफ़ी (बड़ा) इमामबाड़ा और आसिफ़ी इमामबाड़ा परिसर में ही आसिफी मस्जिद और एक बावली (कुआं) का निर्माण भी हुआ।
यह मस्जिद आज भी लखनऊ की एक शानदार ऐतिहासिक इमारत मानी जाती है और आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
जिस किसी ने बड़ा इमाम बाड़ा ( भूल-भुलैया) देखा है उसने इसी परिसर में स्थित आसफ़ी मस्जिद भी जरूर देखी होगी। परिसर में मस्जिद में बड़ी सुन्दर डिजाइन की शानदार मीनारों के गुम्बद सिर उठाए खड़े हैं।यह नवाब आसफुद्दोला के विशाल हृदय और ऐतिहासिक इमारतों के निर्माण पर खुले हाथ से दिल खोलकर खर्च करने की गवाही देती है। कई पहलू से तराशी गई इस मस्जिद की सीड़ीयां जीना-दर-जीना आसफ़ुद्दौला की नेक नियती और उनकी शानों -शौकत को बुलंदियों तक पहुंचाती हैं।
योगेश प्रवीन जी अपनी पुस्तक लखनऊ नामा जिके कारण उन्हें भारत सरकार द्वारा #पद्मश्री से अलंकृत किया गया,में लिखते हैं कि ”
आसिफ़ी मस्जिद अवध बिल्डिंग आर्ट स्कूल का सुन्दरतम नमूना कहना गलत नहीं होगा। लखनऊ की जामा मस्जिद आकार -प्रकार में बड़ी होकर और सजावट में इससे ज्यादा आकर्षक होने के बावजूद कुछ अर्थों में इसका सामना नहीं कर सकती।
इमर्जिंग की विशेषता इसकी सादगी और इमारत के निर्माण में प्रयुक्त विभिन्न अवयवों का सुन्दर और संतुलित अनुपात में होना है।”
मस्जिद के शानदार गुम्बद नाशपाती (एक फल) के आकार के बने हुए हैं और उनके साथ आठ पहलू (रूख)वाली मीनारें बड़ा अच्छा तालमेल मेल बैठाती हैं।मस्जिद के सामने ग्यारह दर (प्रवेश की जगह) एक कतार में बने हैं जिसके बीचो बीच बने प्रमुख प्रवेश द्वार को बहुत शानदार ढ॔ग से सजाया गया है।सारी इमारत में अवध की परम्परागत मेहराबों और स्टूको वर्क का बेहतरीन प्रयोग किया गया है।
लखौड़ी-ईंटों ,चूने और गारे के इस्तेमाल से बनी हुई ये मस्जिद इमामबाड़े की भव्यता में चार चांद लगाती है।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)