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मराठी दलित साहित्य से प्रभावित है आज का दलित साहित्य : शेखर पवार

साहित्यकार से मुलाकात कार्यक्रम

नई दिल्ली : साहित्यकार से मुलाकात कार्यक्रम के अंतर्गत रविवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय , उत्तरी परिसर में हिन्दी तथा मराठी के प्रतिष्ठित लेखक शेखर पवार से बातचीत की गई। श्री शेखर पवार कवि, नाटककार, अनुवादक, कहानीकार, कला समीक्षा और यात्रा वृतांत आदि विधाओं में लेखन के माध्यम से अपनी पहचान बनाने वाले तथा प्रखर अम्बेडकरवादी लेखक हैं। “अंतर्राष्ट्रीय अम्बेडकरवादी लेखक संघ ” (दिल्ली विश्वविद्यालय शाखा) के महामंत्री प्रोफेसर हंसराज सुमन ने “वर्तमान समय के दलित साहित्य में क्या बदलाव आया है ?” इस विषय पर श्री शेखर पवार से विस्तृत चर्चा की। साथ ही पिछले एक दशक में दलित साहित्यकारों द्वारा किस विधा पर ज्यादा साहित्य लिखा गया है, इस तरह के लेखन की वज़ह क्या थी? ऐसे प्रश्नों पर भी विचार-विमर्श किया। बातचीत के क्रम से पूर्व साहित्यकार श्री शेखर पवार का परिचय प्रोफेसर के.पी.सिंह ने दिया। उन्होंने श्री शेखर पवार के साहित्यिक यात्रा की विस्तृत चर्चा करते हुए, मराठी दलित समाज की विडंबना और भोगे हुए यथार्थ के लेखन की चर्चा की। चर्चा-परिचर्चा के दरमियान श्री शेखर पवार ने दलित साहित्य और सामाजिक बदलाव की संभावनाओं पर पूछे गए प्रश्नों का उचित उत्तर दिया।

प्रोफेसर हंसराज सुमन द्वारा पूछे गए प्रश्नों में  शेखर पवार ने कहा कि वर्तमान दलित साहित्य अम्बेडकरवादी वैचारिकी तथा अपने सामाजिक दायित्व से दूर हट गया है। आज का दलित साहित्यकार सुविधाभोगी है। वह सवर्ण साहित्यकारों की नकल करने लगा है। यहाँ तक कि उसके सभी लेखन में सवर्ण साहित्यकारों की छाप दिखाई देती है। दलित साहित्यकार दिशाहीन हो गया है, वह सवर्ण साहित्यकारों के साथ निरर्थक प्रतिस्पर्धा कर रहा है। जबकि सवर्ण साहित्यकार अपने समाज के प्रति समर्पित भाव से लेखन कर रहा है। वह दलित साहित्य की उपेक्षा भी कर रहा है और दलित साहित्य को साहित्य की कोटि से बाहर रखने की कोशिश भी कर रहा है। दलित साहित्यकारों की सबसे बड़ी कमी सामाजिकता का अभाव है। दलितों में जाति, क्षेत्र और भाषा का विभाजन बहुत अधिक है। जबकि सभी दलित समाज की समस्याएँ एक ही हैं। सुविधाभोगी दलित साहित्यकार तो घर से बाहर निकलता ही नहीं है, न ही वह अपने समाज से जुड़ने की कोशिश करता है। अखबार और टीवी न्यूज पर दलितों की खबर देखकर वह साहित्य लेखन करता है। ऐसा दलित साहित्यकार दोहरी मानसिकता में जीता है। एक तरफ वह दलित साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित होना चाहता है तो दूसरी तरफ वह सवर्ण समाज के बीच बैठकर दलितों से दूर रहना चाहता है। ऐसे दोहरे व्यक्तित्व वाले दलित साहित्यकारों के लेखन में दलित समाज का यथार्थ कभी भी नहीं वर्णित हो सकता है।

लेखक श्री पवार ने बताया कि भारत में दलित साहित्य की शुरुआत मराठी दलित साहित्य से हुई है। अन्य भाषा-भाषी दलित साहित्य मराठी दलित साहित्य के प्रभाव में ही लिखे जा रहे हैं। मराठी दलित साहित्य पर बाबा साहेब के वैचारिकी का गहरा प्रभाव है। यही कारण है कि मराठी दलित साहित्य अम्बेडकरवाद के करीब है। मराठी दलित साहित्य की मुख्य विशेषता जमीनी सच्चाई है। वे दलित समाज के बीच जाकर उनकी समस्याओं का अवलोकन करते हैं। जातिगत उपेक्षा, अभाव की जिन्दगी, सवर्ण जातियों द्वारा दुर्व्यवहार यह सभी कुछ वे दलित परिवेश में जा कर देखते हैं फिर उन पर लेखन करते हैं। सवर्ण जातियों द्वारा दलितों के लिए जिन अपशब्दों और गालियों का प्रयोग किया जाता था वह आज भी हो रहा है। इसे दलित समाज में जाकर ही देखा जा सकता है। गांवों में दलितों के लिए अपशब्दों में बोले जाने वाले मुहावरे, कहावतें अभी भी प्रयोग होते हैं। हैरानी तो यह है कि दलितों में विरोध करने की हिम्मत नहीं है। दलित साहित्यकारों को इन सभी बुराईयों को लेखन में लाना चाहिए। जिससे कि दलित समाज में जागरूकता आए। दलित साहित्यकारों को क्षेत्रीय भाषाओं में लेखन पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि दलित समाज अपनी भाषा में पठन-पाठन से विशेष प्रभावित होता है।

प्रोफेसर सुमन ने उनसे पूछा कि दलित साहित्य में किस विधा को सर्वाधिक लोकप्रिय मानते हैं। श्री शेखर पवार ने बताया कि विधाएँ तो सभी लोकप्रिय हैं, लेकिन कविता ही सर्वाधिक चर्चित रही हैं क्योंकि वह मानवीय संवेदनाओं को अधिक प्रभावित करती हैं। उन्होंने कहा कि मध्ययुगीन साहित्य में कबीर अत्यधिक इसलिए प्रभावित करते हैं कि वे सामाजिक जीवन की समस्याओं का बयान करते हैं, वे समाज को यथार्थ दर्शन कराते हैं। वे आडंबर, पाखंड का विरोध करते हैं, उनका दृष्टिकोण समतावादी है। यह सब कुछ काव्य रूपों के माध्यम से ही हो पाया है। कबीर की वाणियों में सीधे सामाजिक बदलाव की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि आज भी उनकी कविता सुनी और पढ़ी जाती है। उन्होंने चिंता जताई कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व सोशल मीडिया के आ जाने से दलित साहित्य के पाठकों की संख्या में कमी आई है, लेकिन जब तक दलित साहित्य को उच्च शिक्षण संस्थानों में पाठ्यक्रम में नहीं लगाया जायेगा दलित साहित्य का विस्तार नहीं होगा। इसलिए दलित, बहुजन नायकों की जीवनी और दलित साहित्य को पाठ्यक्रम में लगाना आवश्यक है ताकि सभी वर्गों के विद्यार्थी इसे जाने, तभी दलित साहित्य के सृजन की सार्थकता है।

वर्तमान दलित साहित्य के समक्ष चुनौतियों पर बातचीत करते हुए श्री शेखर पवार ने कहा कि आज भारत सामाजिक रूप से भयंकर विभाजन की ओर बढ़ रहा है। धर्म का केंद्रीयकरण होने से समाज में भी जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा के आधार पर खाई बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में बौद्ध दर्शन ही मनुष्य को मानवता का सही पाठ पढ़ा सकता है। उन्होंने बताया कि बौद्ध दर्शन के पंचशील तत्व को लोग स्वीकार करते हैं। बुद्ध ही अकेले ऐसे बहुजन समाज के नायक हैं जिसका परचम विदेशों में लहरा रहा है। बौद्ध दर्शन ही समाज में फैले अंधविश्वास, पाखंड तथा समाजिक कुरीतियों को रोक सकता है। इसलिए आवश्यक है कि दलित साहित्यकार बौद्ध दर्शन, कबीर साहेब, ज्योतिबा फुले और बाबा साहेब के विचारों को पढ़कर अपने आचरण में लाएँ। साहित्यकार से मुलाकात कार्यक्रम में अनेक प्रश्न पूछे गए, जिनका लेखक श्री शेखर पवार ने बड़े प्रभावी ढंग से जवाब दिया और कहा कि दलित साहित्य तभी आगे बढ़ सकता है जब वह अन्य साहित्यकारों को साथ लेकर चले। दलित साहित्य केवल साहित्य ही नहीं बल्कि एक आंदोलन भी है, यदि आंदोलन नहीं होगा तो दलित साहित्य को ऊर्जा कैसे मिलेगी?

साहित्यकार से मुलाकात कार्यक्रम के अंत में प्रोफेसर के.पी.सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि यह साहित्यिक परिचर्चा “अंतरराष्ट्रीय अंबेडकरवादी लेखक संघ” के कार्यक्रम का हिस्सा है। प्रोफेसर सिंह ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी का लोगों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि परिचर्चा की यह श्रृंखला आगे भी जारी रहेगी। हम फिर किसी प्रतिष्ठित दलित साहित्यकार के साथ उपस्थित होंगे। श्री शेखर पवार ने प्रोफेसर हंसराज सुमन को हाल ही में प्रकाशित कहानी संग्रह की पुस्तक खतना भेंट की । इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के शिक्षकों , शोधार्थियों ने भाग लिया जिसमें डॉ.मनीष कुमार , पल्लवी प्रियदर्शिनी , डॉ. संगीता ,  अविनाश बनर्जी ,  राज कुमार सरोज ,  घनश्याम भारती ,  सुरेंद्र सिंह आदि भी उपस्थित थे ।

 

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